नहीं हुआ।
देवीसिंह--शायद ऐसा ही हो, मगर इन्द्रदेव से ऐसी उम्मीद नहीं हो सकती,मेरा दिल इसे कबूल नहीं करता । मगर भूतनाथ, तुम भी अजीब सिड़ी हो ।
भूतनाथ—-सो क्यों?
देवीसिंह—-यही कि नकाबपोशों का पीछा करके तुमने कैसे-कैसे तमाशे देखे और तुम्हें विश्वास भी हो गया कि इन नकाबपशों से तुम्हारा कोई भेद छिपा नहीं है, फिर अन्त में यह भी मालूम हो गया कि उन नकाबपोशों के सरदार कुंअर इन्दद्रजीतसिंह और आनन्दसिंह थे, फिर इन दोनों से भी अब कोई बात छिपी नहीं रही।
भूतनाथ--बेशक ऐसा ही है ।
देवीसिंह--तो फिर अब क्यों तुम्हारा दम बेकार ही घुटा जाता है ? अब तुम्हें किसका डर रह गया?
भूतनाथ-कहते तो ठीक हो । खैर, कोई चिन्ता नहीं, जो कुछ होगा, सो देखा जायगा।
देवीसिंह--बल्कि तुम्हें यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि दोनों कुमारों को तुम्हारे भेदों का पता कैसे लगा। ताज्जुब नहीं, अब वे सब बातें खुलना चाहती हों।
भूतनाथ--शायद ऐसा ही हो, मगर मेरी स्त्री के बारे में तुम भी क्या खयाल करते हो?
देवीसिंह--इस बारे में मेरा-तुम्हारा मामला एक-सा ही रहा है, अब इस विषय में मैं कुछ भी नहीं कह सकता। वह देखो, इन्द्रदेव, तेजसिंह के पास चला गया है और तुम्हारी स्त्री की तरफ इशारा करके कुछ कह रहा है । तेजसिंह अलग हों तो मैं उनसे कुछ पूछू ! यहाँ की छटा ने तो लोगों का दिल ऐसा लुभा लिया है कि सभी ने एक-दूसरे का साथ ही छोड़ दिया ।(चौंककर) लो देखो, तुम्हारा लड़का नानक भी तो आ पहुँचा, उसके हाथ में भी कोई तस्वीर मालूम पड़ती है, अर्जुन भी उसी के साथ है।
भूतनाथ--(ताज्जुब से) आश्चर्य की बात है ! नानक और अर्जुन का साथ कैसे हुआ? और नानक यहाँ आया ही क्यों? क्या अपनी मां के साथ आया है ? क्या सपूत छोकरे ने भी मेरी तरफ से आँखें फेर ली हैं ? ओफ, यह तिलिस्मी जमीन तो मेरे लिए भयानक सिद्ध हो रही है, अच्छा-खासा तिलिस्म मुझे दिखाई दे रहा है। जिन पर मुझे विश्वास था, जिनका मुझे भरोसा था, जो मेरी इज्जत करते थे, यहाँ उन्हीं को मैं अपना विपक्षी पाता हूँ और कोई मुझसे बात तक करना पसन्द नहीं करते ।
नानक और और अर्जुन भूतनाथ और देवीसिंह ताज्जुब के साथ देख रहे थे,नानक ने भी भूतनाथ को देखा, मगर दूर ही से प्रणाम करके रह गया, पास न आया और और अर्जुन को लिए सीधे इन्द्रदेव की तरफ चला गया जो तेजसिंह से बातें कर रहे थे । इस समय आज्ञानुसार अर्जुन अपने हाथ में एक तस्वीर लिए हुए था और नानक के हाथ में भी एक तस्वीर थी।
नानक और अर्जुन को अपने पास आते देख इन्द्रदेव ने हाथ के इशारे से उन्हें दूर ही खड़े रहने के लिए कहा और उन्होंने भी ऐसा ही किया। कुछ देर तक और भी