पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/६१

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पसन्द आया और बार-बार इसकी तारीफ करने लगे। यद्यपि इस बगीचे में सभी के लायक दर्जे-बदर्जे कुर्सियाँ बिछी हुई थीं, मगर किसी का जी बैठने को नहीं चाहता था। सब कोई घूम-घूमकर यहाँ का आनन्द लेना चाहते थे और ले रहे थे, मगर इस बीच में एक ऐसा मामला हो गया जिसने भूतनाथ और देवीसिंह दोनों ही को चौंका दिया। एक आदमी जल से जरा हुआ चाँदी का घड़ा और सोने की झारी लेकर आया और संगमरमर की चौकी पर, जो बगीचे में पड़ी हुई थी, रखकर लौट चला । इसी आदमी को देखकर भूतनाथ और देवीसिंह चौंके थे, क्योंकि यह वही आदमी था जिसे ये दोनों ऐयार नकाबपोशों के मकान में देख चुके थे। इसी आदमी ने नकाबपोशों के सामने एक तस्वीर पेश की की थी और कहा था कि "कृपानाथ, बस मैं इसी का दावा भूतनाथ पर करूँगा।"]

केवल इतना ही नहीं, भूतनाथ ने वहाँ से थोड़ी दूर पर एक झाड़ी में अपनी स्त्री को भी फूल तोड़ते देखा और धीरे-से देवीसिंह को छेड़कर कहा, "वह देखिये मेरी स्त्री भी वहाँ मौजूद है, ताज्जुब नहीं कि आपकी चम्मा भी कहीं घूम रही हो।"


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यद्यपि भूतनाथ को तरवुदों से छुट्टी मिल चुकी थी, यद्यपि उसका कसूर माफ हो चुका था, और वह महाराज के खास ऐयारों में मिला लिया गया था, मगर इस जगह उस आदमी को, जिसने नकाबपोशों के मकान में तस्वीर पेश की और साथ उस पर दावा करना चाहा था, देखकर उसकी अवस्था फिर बिगड़ गई और साथ ही इसके अपनी स्त्री को भी वहाँ काम करते हुए देखकर उसे क्रोध चढ़ आया ।

जब वह आदमी पानी का घड़ा और झारी रखकर लौट चला, तब इन्द्रदेव ने उसे पुकारकर कहा, "अर्जन, जरा वह तस्वीर भी तो ले आओ जिसे बार-बार तुम दिखाया करते हो और जो हमारे दोस्त भूतनाथ को डराने और धमकाने के लिए एक औजार के तौर पर तुम्हारे पास रखी हुई है।"

इस नाम ने भूतनाथ के कलेजे को और भी हिला दिया। वास्तव में उस आदमी का यही नाम था और इस खयाल ने तो उसे और भी बदहवास कर दिया कि अब वह तस्वीर लेकर आयेगा।

इस समय सब कोई बाग में टहल रहे थे और इसलिए एक-दूसरे से कुछ दूर हो रहे थे । भूतनाथ बढ़कर देवीसिंह के पास चला गया और उनका हाथ पकड़कर धीरे से बोला, "देखा, इन्द्रदेव का रंग-ढंग ?"

देवीसिंह --(धीरे-से) मैं सब देख और समझ रहा हुँ, मगर तुम घबराओ नहीं।

भूतनाथ-मालूम होता है कि इन्द्रदेव का दिल अभी तक मेरी तरफ से साफ

1.देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति, बीसवाँ भाग, दूसरा बयान ।