पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/५८

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रिक्त यहाँ से मेरा मकान बहुत नजदीक है। इसलिए जिस चीज की भी जरूरत हो, मैं बहुत जल्द ला सकता हूँ। (कुछ देर सोच कर और हाथ जोड़ कर) मैं एक और भी जरूरी बात अर्ज करना चाहता हूँ।

महाराज--वह क्या ?

इन्द्रजीतसिंह-यह तिलिस्म आप ही के बुजुर्गों की बदौलत बना है और उन्हीं की आज्ञानुसार जब से यह तिलिस्म तैयार हुआ है, तभी से मेरे बुजुर्ग लोग इसके दारोगा होते आये हैं। अब मेरे जमाने में इस तिलिस्म की किस्मत ने पलटा खाया है। यद्यपि कुमार इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह ने इस तिलिस्म तोड़ा या फतह किया है और इसमें की बेहिसाब दौलत के मालिक हुए हैं तथापि यह तिलिस्म अभी दौलत से खाली नहीं हुआ है और न ऐसा खुल ही गया है कि ऐरे-गैरे जिसका जी चाहे इसमें घुस आयें । हाँ यदि आज्ञा हो तो दोनों कुमारों के हाथ से मैं इसके बचे-बचाये हिस्से को भी तुड़वा सकता हूँ, क्योंकि यह काम इस तिलिस्म के दारोगा का अर्थात् मेरा है, मगर मैं चाहता हूँ कि बड़े लोगों की इस कीर्ति को एकदम से मटियामेट न करके भविष्य के लिए भी कुछ छोड़ देना चाहिए । आज्ञा पाने पर मैं इस तिलिस्म की पूरी सैर कराऊँगा और तब अर्ज करूँगा कि बुजुर्गों की आज्ञानुसार इस दास ने भी जहाँ तक हो सका इस तिलिस्म की खिदमत की, अब महाराज को अख्तियार है कि मुझसे हिसाब-किताब समझ कर आइन्दा के लिए जिसे चाहें, यहाँ का दारोगा मुकर्रर करें।

महाराज--इन्द्रदेव, मैं तुमसे और तुम्हारे कामों से बहुत ही प्रसन्न हूँ। मगर मैं यह नहीं चाहता कि तुम मुझे बातों के जाल में फंसा कर बेवकूफ बनाओ और यह कहो कि "भविष्य के लिए किसी दूसरे को यहाँ का दारोगा मुकर्रर कर लो।" जो कुछ तुमने राय दी है वह बहुत ठीक है अर्थात् इस तिलिस्म के बचे-बचाये स्थानों को छोड़ देना चाहिए जिसमें कि बड़े लोगों का नाम-निशान बना रहे । मगर यहाँ के दारोगा की पदवी सिवाय तुम्हारे खानदान के कोई दूसरा कब पा सकता है ? वस दया करके इस ढंग की बातों को छोड़ दो और जो कुछ खुशी-खुशी कर रहे हो, सो करो।

इन्द्रजीतसिंह-(अदब के साथ सलाम करके) जो आज्ञा ! मैं एक बात और भी निवेदन करना चाहता हूँ।

महाराज--वह क्या?

इन्द्रदेव-वह यह कि इस जगह से आप कृपा करके पहले मेरे स्थान को, जहाँ मै रहता हूँ, पवित्र कीजिये और तब तिलिस्म की सैर करते हुए अपने चुनार गढ़ वाले तिलिस्मी मकान में पहुँचिये। इसके अतिरिक्त इस तिलिस्म के अन्दर जो कुछ कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह ने पाया है अथवा वहाँ से जिन चीजों को निकाल कर चुनारगढ़ पहुँचाने की आवश्यकता है, उनकी फेहरिस्त मुझे मिल जाय और ठीक तौर पर बता दिया जाय कि कौन चीज कहाँ पर है तो उन्हें वहाँ से बाहर कर के आपके पास भेजने का बदोबस्त करूँ। यद्यपि यह काम भैरोंसिंह और तारासिंह भी कर सकते हैं,परन्तु जिस काम को मैं एक दिन में करूँगा, उसे वे चार दिन में भी पूरा न कर सकेंगे।जिस चीज को जिस राह से निकाल ले जाने में सुभीता देखुंगा, निकाल ले जाऊँगा।