पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/५४

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हाँ, यह नहीं जान पड़ता कि वे सब औरत हैं या मर्द ।

और लोगों के विचार भी दोनों कुमारों की ही तरह के थे और मशाल के साथ कई आदमियों को देखकर सभी ताज्जुब कर रहे थे। यकायक वह रोणनी गायब हो गई और आदमी दिखाई देने से रह गये, मगर थोड़ी ही देर बाद वह रोशनी फिर दिखाई दी। अबकी दफे रोशनी और भी नीचे की तरफ थी और उसके साथ के आदमी साफ-साफ दिखाई देते थे।

गोपालसिंह--(इन्द्रजीतसिंह से) मैं समझता था कि आप दोनों भाइयों के सिवाय कोई गैर आदमी इस तिलिस्म में नहीं आ सकता।

इन्द्रजीतसिंह--मेरा भी यही खयाल था मगर क्या आप भी यहाँ तक नहीं आ सकते ? आप तो तिलिस्म के राजा हैं।

गोपालसिंह--हाँ मैं आ तो सकता हूँ मगर सीधी राह से और अपने को बचाते हुए, वे काम मैं नहीं कर सकता जो आप कर सकते हैं । परन्तु आश्चर्य तो यह है कि वे लोग पहाड़ पर से आते हुए दिखाई दे रहे हैं जहाँ से आने का कोई रास्ता ही नहीं है । तिलिस्म बनाने वालों ने इस बात को जरूर अच्छी तरह विचार लिया होगा।

इन्द्रजीतसिंह--बेशक ऐसा ही है, मगर यहाँ पर क्या समझा जाय? मेरा खयाल है कि थोड़ी ही देर में वे लोग इस बाग में आ पहुँचेंगे ।

गोपालसिंह--बेशक ऐसा ही होगा । (रुककर) देखिए, रोशनी फिर गायब हो ग़ई, शायद वे लोग किसी गुफा में घुस गये । कुछ देर तक सन्नाटा रहा और सब कोई बड़े गौर से उसी तरफ देखते रहे । इसके बाद यकायक बाग के पश्चिम तरफ वाले दालान में रोशनी मालूम होने लगी जो उस दालान के ठीक सामने था जिसमें हमारे महाराज तथा ऐयार लोग टिके हुए थे, मगर पेड़ों के सबब से साफ नहीं दिखाई देता था कि दालान में कितने आदमी आए हैं और क्या कर रहे हैं। जब सभी को निश्चय हो गया कि वे लोग धीरे-धीरे पहाड़ों के नीचे उतरकर बाग के दालान या बारहदरी में आ गए हैं तब महाराज सुरेन्द्रसिंह ने तेजसिंह को हुक्म दिया कि जाकर देखो और पता लगाओ कि वे लोग कौन हैं और वहाँ क्या कर रहे हैं।

गोपालसिंह--(महाराज से) तेजसिंहजी का वहाँ जाना उचित न होगा क्योंकि यह तिलिस्म का मामला है और यहां की बातों से ये बिल्कुल बेखबर है, यदि आज्ञा हो तो कुंअर इन्द्रजीतसिंह को साथ लेकर मैं जाऊँ ।

महाराज–-ठीक है, अच्छा तुम्हीं दोनों आदमी जाकर देखो, क्या मामला है।

कुंअर इन्द्रजीतसिंह और राजा गोपालसिंह वहाँ से उठे और धीरे-धीरे तथा पेड़ों की आड़ में अपने को छिपाते हुए उस दालान की तरफ रवाना हुए जिसमें रोशनी दिखाई दे रही थी, यहाँ तक कि उस दालान अथवा बारहदरी के बहुत पास पहुंच गये और एक पेड़ की आड़ में खड़े होकर गौर से देखने लगे।

इस दालान में उन्हें पन्द्रह आदमी दिखाई दिए, जिनके विषय में यह जानना कठिन था कि वे मर्द हैं या औरत, क्योंकि सभी की पोशाक एक ही रंग-ढंग की तथा