पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/३७

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जमाने में वह बहुत अच्छी इमारत थी।"

सुरेन्द्रसिंह-यद्यपि आजकल जो इमारत तिलिस्मी खंडहर पर बनी है और जिसके बनवाने में जीतसिंह ने अपनी तबीयतदारी और कारीगरी का अच्छा नमूना दिखाया है, बुरी नहीं है, मगर हमें इस पहली इमारत का ढंग कुछ अनूठा और सुन्दर मालूम पड़ता है।

जीतसिंह-बेशक ऐसा ही है । यदि इस तस्वीर को मैं पहले देखे हुए होता तो जरूर इसी ढंग की इमारत बनवाता।

वीरेन्द्रसिंह-और ऐसा होने से वह तिलिस्म एक दफे नया मालूम पड़ता।

इन्द्रजीतसिंह--यह नारगढ़ वाला तिलिस्म साधारण नहीं बल्कि बहुत बड़ा है। नौगढ़, विजयगढ़ और जमानिया तक इसकी शाखा फैली हुई है । इस बँगले को इस बहुत बड़े और फैले तिलिस्म का 'केन्द्र' समझना चाहिए, बल्कि ऐसा भी कह सकते हैं कि यह बंगला तिलिस्म का नमूना है ।

थोड़ी देर तक दालान में खड़े इसी किस्म की बातें होती रहीं और इसके बाद सभी को साथ लिए हुए दोनों कुमार बँगले के अन्दर रवाना हुए।

सदर दरवाजे का पर्दा उठाकर अन्दर जाते ही ये लोग एक गोल कमरे में पहुंचे,जो भूतनाथ और देवीसिंह का देखा हुआ था। इस गोल और गुम्बददार खूबसूरत कमरे की दीवारों पर जंगलों, पहाड़ों और रोहतासगढ़ की तस्वीरें बनी हुई थीं। घड़ी-घड़ी तारीफ न करके एक ही दफे लिख देना ठीक होगा कि इस बँगले में जितनी तस्वीरें देखने में आईं, सभी आला दर्जे की कारीगरी का नमूना थीं और यही मालूम होता था कि आज ही बनकर तैयार हुई हैं । इस रोहतासगढ़ की तस्वीर को देखकर सब कोई बड़े प्रसन्न हुए और राजा वीरेन्द्रसिंह ने तेजसिंह की तरफ देखकर कहा, "रोहतासगढ़ किले और पहाड़ी की बहुत ठीक और साफ तस्वीर बनी हुई है।"

तेजसिंह-जंगल भी उसी ढंग का बना हुआ है, कहीं-कहीं से ही फर्क मालूम पड़ता है, नहीं तो बाज जगहें तो ऐसी बनी हुई हैं जैसी मैंने अपनी आँखों से देखी हैं ।(उँगली का इशारा करके) देखिये यह वही कब्रिस्तान है जिस राह से हम लोग रोहतास- गढ़ के तहखाने में घुसे थे। हाँ, यह देखिए, बारीफ हरफों में लिखा हआ भी है-"तहखाने में जाने का बाहरी फाटक ।"

इन्द्रजीतसिंह--इस तस्वीर को अगर गौर से देखेंगे तो वहाँ का बहुत ज्यादा हाल मालूम होगा। जिस जमाने में यह इमारत तैयार हुई थी, उस जमाने में वहां की और उसके चारों तरफ की जैसी अवस्था थी, वैसी ही इस तस्वीर में दिखाई है,आज चाहे कुछ फर्क पड़ गया हो!

तेजसिंह-बेशक ऐसा ही है।

इन्द्रजीतसिंह-इसके अतिरिक्त एक और ताज्जुब की बात अर्ज करूंगा।

वीरेन्द्रसिंह-वह क्या ?

इन्द्रजीतसिंह-इसी दीवार में से वहाँ (रोहतासगढ़) जाने का रास्ता भी है !

सुरेन्द्रसिंह-वाह-वाह ! क्या तुम इस रास्ते को खोल भी सकते हो?