इच्छा पर ही छोड़ देना चाहिए, वे जिसे चाहें ले जायें।
कमलिनी -- बेशक, ऐसा ही ठीक होगा । अब तिलिस्म के अन्दर जाने में आपत्ति ही काहे की है, जब और जितनी दफे आप चाहेंगे हम लोगों को ले जायेंगे ।
कुमार -- नहीं, सो बात ठीक नहीं । वहुत सी जगहें ऐसी हैं जहाँ सैकड़ों दफे जाने में भी कोई हर्ज नहीं है, मगर बहुत-सी जगहें तिलिस्म टूट जाने पर भी नाजुक हालत में बनी हुई हैं और जहाँ बार-बार जाना कठिन है, तथापि मैं तुम लोगों को वहाँ की सैर जरूर कराऊँगा।
कमलिनी–मैं समझती हूँ कि मेरे उस तालाब वाले तिलिस्मी मकान के नीचे भी कोई तिलिस्म जरूर है । उस खून से लिखी हुई तिलिस्मी किताब का मजमून पूरी तरह से मेरी समझ में नहीं आता था, तथापि इस ढंग की बातों पर कुछ शक जरूर होता था।
कुमार -- तुम्हारा ख्याल बहुत ठीक है, हम दोनों भाइयों को खून ने लिखी उस तिलिस्मी किताब के पढ़ने से बहुत ज्यादा हाल मालूम हुआ है, इसके अतिरिक्त मुझे तुम्हारा वह स्थान भी ज्यादा पसन्द है और पहले भी मैं (जब तुम्हारे पास वहाँ था) यह विचार कर चुका था कि 'सब कामों से निश्चिन्त होकर कुछ दिनों के लिए जरूर यहाँ डेरा जमाऊँगा, परन्तु अब मेरा वह विचार कुछ काम नहीं दे सकता।
कमलिनी -- सो क्यों ?
कुमार -- इसलिए कि अगर तुम्हारी बातें ठीक हैं, तो अब वह स्थान तुम्हारे पति के अधिकार में होगा।
कमलिनी -- (मुस्कुराकर) तो क्या हर्ज है, मैं उनसे कहकर आपको दिला दूंगी।
कुमार -- मैं किसी से भीख मांगना पसन्द नहीं करता और न उनसे लड़कर वह स्थान छीन लेना ही मुझे मंजूर होगा। कमलिनी, सच तो ये है कि तुमने मुझे धोखा दिया और बहुत बड़ा धोखा दिया ! मुझे तुमसे यह उम्मीद न थी। (कुछ सोचकर) एक दफे तुम मुझसे फिर कह दो कि सचमुच शादी हो गई।
इसके जवाब में कमलिनी खिलखिलाकर हँस पड़ी और बोली, "हाँ, हो गई।"
कुमार -- मेरे सिर पर हाथ रखकर कसम खाओ।
कमलिनी —— (कुमार के पैरों पर हाथ रख के) आपसे मैं कसम खाकर कहती हूं कि मेरी शादी हो गई।
हम लिख नहीं सकते कि इस समय कुमार के दिल की कैसी बुरी हालत थी, रंज और अफसोस से उनका दिल बैठा जाता था और कमलिनी हँस-हँसकर चुटकियाँ लेती थी। बड़ी मुश्किल से कुमार थोड़ी देर तक और उसके पास बैठे और फिर उठकर लम्बी साँसें लेते हुए अपने कमरे में चले गए। रात भर उन्हें नींद न आई ।