इन्द्रजीतसिंह-आखिर बात क्या थी जो उस दिन मैं तुमसे हार गया था ?
कमलिनी-आपको उस बेहोशी की दवा ने कमजोर और खराब कर दिया था जो एक अनाड़ी ऐयार की बनाई हुई थी। उस समय केवल आपको चैतन्य करने के लिए मैं लड़ पड़ी थी, नहीं तो कहाँ मैं और कहाँ आप !
इन्द्रजीतसिंह-खैर, ऐसा ही होगा । मगर इसमें तो कोई शक नहीं कि तुमने मेरी जान बचाई, केवल उसी दफे नहीं बल्कि उसके बाद भी कई दफे ।
कमलिनी-छोड़िए भी, अव इन सब बातों को जाने दीजिये, मैं ऐसी बातें नहीं सुनना चाहती । हाँ, यह बतलाइये कि तिलिस्म के अन्दर आपने क्या-क्या देखा, और क्या-क्या किया?
इन्द्रजीतसिंह- मैं सब हाल तुमसे कहूँगा, बल्कि उन नकाबपोशों की कैफियत भी तुमसे बयान करूंगा जो मुझे तिलिस्म के अन्दर कैद मिले और जिनका हाल अभी तक मैंने किसी से बयान नहीं किया। मगर तुम यह सब हाल अपनी जुबान से किसी से न कहना।
कमलिनी-बहुत खूब ।
इसके बाद कुंअर इन्द्रजीतसिंह ने अपना कुल हाल कमलिनी से बयान किया।और कमलिनी ने भी अपना पिछला किस्सा और उसी के साथ-साथ भूतनाथ, नानक तथा तारा वगैरह का हाल बयान किया जो कुमार को मालूम न था। इसके बाद पुनः उन।दोनों में यों बातचीत होने लगी-
इन्द्रजीतसिंह-आज तुम्हारी जुबानी बहुत-सी ऐसी बातें मालूम हुई हैं जिनके विषय में मैं कुछ भी नहीं जानता था।
कमलिनी-इसी तरह आपकी जुबानी उन नकाबपोशों का हाल सुनकर मेरी अजीब हालत हो रही है, क्या करूँ, आपने मना कर दिया है कि किसी से इस बात का जिक्र न करना, नहीं तो अपने सुयोग्य पति से उनके विषय में
इन्द्रजीतसिंह-(चौंककर) हैं ! क्या तुम्हारी शादी हो गई ?
कमलिनी—(कुमार के चेहरे का रंग उड़ा हुआ देख मुस्कुराकर) मैं अपने उस तालाब वाले मकान में अर्ज कर चुकी थी कि मेरी शादी बहुत जल्द होने वाली है !
इन्द्रजीतसिंह- (लम्बी सांस लेकर) हाँ, मुझे याद है, मगर यह उम्मीद न थी कि वह इतनी जल्दी हो जायगी।
कमलिनी-तो क्या आप मुझे हमेशा कुँआरी ही देखना पसन्द करते थे ?
इन्द्रजीतसिंह-नहीं, ऐसा तो नहीं है, मगर
कमलिनी -मगर क्या ? कहिए-कहिए, रुके क्यों ?
इन्द्रजीतसिंह-यही कि मुझसे पूछ तो लिया होता।
कमलिनी-क्या खूब ! आपने क्या मुझसे पूछकर इन्द्रानी के साथ शादी की थी जो मैं आपसे पूछ लेती !
इतना कहकर कमलिनी हँस पड़ी और कुमार ने शरमाकर सिर झुका लिया । मगर इस समय कुमार के चेहरे से भी मालूम होता था कि उन्हें हद दर्जे का रंज है और