पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/३०

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की तरफ रवाना हुई और कुमार उसके पीछे-पीछे चले। चौखट के अन्दर पैर रखते ही कुमार की निगाह कमलिनी पर पड़ी और वे भौचक्के से होकर उसकी सूरत देखने लगे।

इस समय कमलिनी की सुन्दरता बनिस्बत पहले के बहुत ही बढ़ी-चढ़ी देखने में आई । पहले जिन दिनों कुमार ने कमलिनी की सूरत देखी थी, उन दिनों वह बिल्कुल उदासीन और मामूली ढंग पर रहा करती थी। मायारानी के झगड़े की बदौलत उसकी जान जोखिम में पड़ी हुई थी और इस कारण से दिमाग को एक पल के लिए भी छुट्टी नहीं मिलती थी । इन्हीं सब कारणों से उसके शरीर और चेहरे की रौनक में भी बहुत बड़ा फर्क पड़ गया था, तिस पर भी वह कुमार की सच्ची निगाह में एक ही दिखाई देती थी। फिर आज उसकी खुशी और खूबसूरती का क्या कहना है जब कि ईश्वर की कृपा से वह अपने तमाम दुश्मनों पर फतह पा चुकी है, तर दुदों के बोझ से हलकी हो चुकी है और मनमानी उम्मीदों के साथ अपने को बनाने-सँवारने का भी मुनासिब मौका उसे मिल गया है ! यही सबब है कि इस समय वह रानियों की सी पोशाक और सजावट में दिखाई देती है।

कमलिनी की इस समय की खूबसूरती ने कुमार पर बहुत बड़ा असर किया और बनिस्बत पहले के इस समय बहुत ज्यादा कुमार के दिल पर अपना अधिकार जमा लिया,कुमार को देखते ही कमलिनी ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कुमार ने आगे बढ़कर बड़े प्रेम से उसका हाथ पकड़कर पूछा, "कहो, अच्छी तो हो?"

"अब भी अच्छी न होऊँगी !" कहकर मुस्कुराती हुई कमलिनी ने कुमार को ले जाकर एक ऊँची गद्दी पर बैठाया और आप भी उनके पास बैठकर यों बातचीत करने लगी।

कमलिनी-कहिये, तिलिस्म के अन्दर आपको किसी तरह की तकलीफ तो नहीं नहीं हुई

इन्द्रजीतसिंह-ईश्वर की कृपा से हम लोग कुशलपूर्वक यहाँ तक चले आये और अब तुम्हें धन्यवाद देते हैं, क्योंकि यह सब बातें हमें तुम्हारी ही बदौलत नसीब हुई हैं । अगर तुम मदद न करतीं तो न मालूम हम लोगों की क्या दशा होती ! हमारे साथ तुमने जो कुछ उपकार किया है, उसका बदला चुकाना मेरी सामर्थ्य के बाहर है, सिवाय इसके मैं क्या कह सकता हूँ कि मेरी (अपनी छाती पर हाथ रख के) यह जान और शरीर तुम्हारा है।

कमलिनी-(मुस्कुरा कर) अब कृपा कर इन सब बातों को तो रहने दीजिए, क्योंकि इस समय मैंने इसलिए आपको तकलीफ नहीं दी है कि अपनी बढ़ाई सुनूं या आप पर अपना अधिकार जमाऊँ।

इन्द्रजीतसिंह--अधिकार तो तुमने उसी दिन मुझ पर जमा लिया जिस दिन ऐयार के हाथ से मेरी जान बचाई और मुझसे तलवार की लड़ाई लड़कर यह भी दिखा दिया कि मैं तुमसे ताकत में कम नहीं हूँ।

कमलिनी- (हँसकर) क्या खूब ! मैं और आपका मुकाबला करूं!आपने मुझे भी क्या कोई पहलवान समझ लिया है ?