बात की मुबारकबाद देने के लिए मैं आया हूँ कि तुम्हारा एक नालायक दोस्त इस दर्जे को पहुँच गया।"
देवीसिंह-(प्रसन्न होकर और भूतनाथ को गले से लगाकर) बेशक यह बड़ी खुशी की बात है, ऐसी अवस्था में तुम्हें अपने पुराने मालिक रणधीरसिंह को भी सलाम करने के लिए जाना चाहिए।
भूतनाथ-जरूर जाऊँगा !
देवीसिंह-यह कार्रवाई कब हुई ?
भूतनाध-अभी थोड़ी ही देर पहले हुई । मैं इस समय महाराज के पास से ही चला आ रहा हूँ। इतना कहकर भूतनाथ ने आज की रात का कुल हाल देवीसिंह से बयान किया ।इसके बाद भूतनाथ और देवीसिंह में देर तक बातचीत होती रही, और जब दिन अच्छी तरह निकल आया, तब दोनों ऐयार वहाँ से उठे और स्नान-संध्या की फिक्र में लगे ।
जरूरी कामों से निश्चिन्ती पा और स्नान-पूजा से निवृत्त होकर भूतनाथ अपने पुराने मालिक रणधीरसिंह के पास चला गया। बेशक उसके दिल में इस बात का खुटका लगा हुआ था कि उसका पुराना मालिक उसे देखकर प्रसन्न न होगा, बल्कि सामना होने पर भी कुछ देर तक उसके दिल में इस बात का गुमान बना रहा, मगर जिस समय भूतनाथ ने अपना खुलासा हाल बयान किया, उस समय बहुत परेशान रणधीरसिंह को और प्रसन्न पाया। रणधीरसिंह ने उसको खिलअत और इनाम भी दिया और बहुत देर तक उससे तरह-तरह की बातें करते रहे।
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यह बात तो तय पा चुकी थी कि सब कामों के पहले कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की शादी हो जानी चाहिए, अतः इसी खयाल से जीतसिंह शादी के इन्तजाम में जी-जान से कोशिश कर रहे हैं और इस बात की खबर पाकर सभी प्रसन्न हो रहे हैं कि आज दोनों कुमार आ जायेंगे और शीघ्र ही उनकी शादी भी हो जायेगी। महाराज की आज्ञानुसार जीतसिंह मुलाकात करने के बाद इस बात का फैसला भी कर आये कि किशोरी के साथ-ही-साथ कामिनी का भी कन्यादान रणधीरसिंह ही करेंगे। साथ ही इसके रणधीरसिंह की यह बात भी जीतसिंह ने मंजूर कर ली कि इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के आने के पहले किशोरी और कामिनी उनके (रणधीरसिंह के) खेमे में पहुंचा दी जायेंगी। आखिर ऐसा ही हुआ अर्थात् किशोरी और कामिनी बड़ी हिफाजत के साथ रणधीरसिंह के खेमे में पहुँचा दी गई और बहुत से फौजी सिपाहियों के साथ पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और पण्डित बद्रीनाथ ऐयार खास उनकी हिफाजत के लिए छोड़ दिए गए।