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विश्राम काल में रुचि से पढ़ते थे फिर 'चहारदरवेश' और 'अलिफलैला' के किस्सों का समय आया, अब इस ढंग के उपन्यासों का समय है। अब भी वह समय दूर है, जब लोग बिना किसी प्रकार की न्यूनाधिकता के ऐतिहासिक पुस्तकों को रुचि से पढ़ेंगे।जब वह समय आवेगा उस समय 'कथासरित्सागर' के समान 'चन्द्रकान्ता' बतलावेगी कि एक वह भी समय था, जब इसी प्रकार के ग्रन्थों से ही वीर प्रसू भारत भूमि की सन्तान का मनोविनोद होता था । भगवान उस समय को शीघ्र लावें !