पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२३३

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रोयें और कहाँ तक विलाप करें? जमाने के बेकदर हाथों की बदौलत तुम अब मिट गये और मिटते चले जाते हो, जमीन तुमको खा गई और उनको भी खा गई जो तुम्हारे जानने वाले थे, यहाँ तक कि तुम्हारा निशान, तो निशान तुम्हारा नाम तक भी मिट गया!

"खलीफा-बिन-उम्मीयाँ के जमाने में जिन दिनों अब्दुल मलिक बिनमर्दा की तरफ से उसका भाई अब्दुलअजीज बिनमर्दा मिश्र देश का गवर्नर था, एक दिन उसके सामने दफीना (जमीन के नीचे छिपा हुआ खजाना) का हाल बतलाने वाल: कोई शख्स हाजिर हुआ। अब्दुल अजीज ने बात-बात ही में उससे कहा, "किसी दफीना का हाल तो बताइये !" जिसके जवाब में उसने एक टीले का नाम लेकर कहा कि उसमें खजाना है और इसकी परख इस तौर से हो सकती है कि वहां की थोड़ी जमीन खोदने पर संग- मरमर और स्याह पत्थर का फर्श मिलेगा, जिसके नीचे फिर खोदने से एक खाली दरवाजा दिखाई देगा, उस दरवाजे के उखड़ने के बाद सोने का एक खम्भा नजर आवेगा, जिसके ऊपरी हिस्से पर एक मुर्ग बैठा होगा, उसकी आँखों में जो सुर्ख मानिक जड़े हैं वह इस कदर कीमती हैं कि सारी दुनिया उनके बदले और दाम में काफी हो तो हो । उसके दोनों बाजू मानिक और पन्ने से सजे हुए हैं और सोने वाले खम्भे से सोने के पत्तरों का कुछ हिस्सा निकल कर उस मुर्ग के सिर पर छाया किये हुए है।

"यह ताज्जुब की बात सुन कर उस गवर्नर का कुछ ऐसा शौक बढ़ा कि आमतौर पर हुक्म दे दिया कि वह जगह खोदी जाय और जो लोग उसको खोदेंगे और उसमें काम करेंगे, उनको हजारों रुपये दिये जायेंगे । वह जगह एक टीले पर थी, इस वजह से बहुत घेरा देकर खुदाई का काम शुरू हुआ। पता देने वाले ने जो संगमर्मर और स्याह पत्थर के फर्श वगैरह बताये थे, वे मिलते जाते थे और बताने वाले के कौल की तसदीक होती जाती थी और इसी वजह से अब्दुलअजीज का शौक बढ़ता जाता था तथा खुदाई का काम मुस्तैदी के साथ होता जाता था कि यकायक मुर्ग का सिर जाहिर हुआ। सिर के जाहिर होते ही एकवारगी आँखों को चकाचौंध करने वाली तेज रोशनी उस खोदी हुई जगह से निकल कर फैल गई, मालूम हुआ कि बिजली तड़प गई ।

"यह गैरमामूली रोशनी मुर्ग की आँखों से निकल रही थी। दोनों आँखों में बड़े- बड़े मानिक जड़े हुए थे, जिनकी यह बिजली थी। और ज्यादा खोदे जाने पर उसके दोनों जड़ाऊ बाजू भी नजर आये और फिर उसके पाँव भी दिखाई दिये।

"उस मुर्ग वाले सोने के खम्भे के अलावा एक और खम्भा भी नजर आया जो एक इमारत की तरह पर था। यह इमारती खम्भा रंग-बिरंगे पत्थरों का बना हुआ था, जिसमें कई कमरे थे और उनकी छतें बिल्कुल छज्जेदार थीं। उसके दरवाजों पर बड़े और खूबसूरत आलों (ताकों) की एक कतार थी, जिनमें तरह-तरह की रखी हुई सूरतें और बनी सूरतें खूबी के साथ अपनी शोभा दिखा रही थीं, सोने और जवाहरात के जगह- जगह पर ढेर थे, जो छिपे हुए थे, ऊपर से चाँदी के पत्तर लगे थे और पत्तरों पर सोने की कीलें जड़ी थीं । अब्दुलअजीज बिनमर्दा यह खबर पाते ही बड़ो चाह से उस मौके पर पहुँचा और जो आश्चर्यजनक तिलिस्म वहाँ जाहिर था, उसको बहुत दिलचस्पी के साथ