पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२३०

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उसके विषय में भी यही कहा जाता है कि उस दीवार पर चढ़ कर दूसरी तरफ झांकने वाला हँसता-हँसता दूसरी तरफ कूद पड़ता था और फिर उस आदमी का पता ही नहीं लगता कि क्या हुआ और कहाँ गया। इस मशहूर और ऐतिहासिक बात को कई आदमी झूठ समझते हैं मगर वास्तव में ऐसा नहीं है । इसके विषय में हम नीचे एक लेख की नकल करते हैं जो तारीख 14 मार्च सन् 1905 ई० के अवध अखबार में छपा था-

"अगले जमाने में फिलासफर (वैज्ञानिक) लोग अपनी बुद्धि से जो चीजें बना गये हैं अब तक यादगार हैं। उनकी छोटी-सी तारीफ यह है कि इस समय के लोग उनके कामों को समझ भी नहीं सकते । उनके ऊंचे हौसले और ऊँचे खयाल की निशानी चीन हाते की दीवार है और हिन्दुस्तान में भी ऐसी बहुत-सी चीजें हैं जिनका किस्सा आगे चल कर मैं लिखूगा । इस समय 'दीवार कहकहा' पर लिखना चाहता हूँ।"

"मैंने सन् 1899 ई० में 'अखबार आलम' मेरठ में कुछ लिखा जिसकी मालिक अखबार ने बड़ी प्रशंसा की थी, अब उसके कुछ और विशेष सबब खयाल में आये हैं जो बयान करना चाहता हूँ।

"मुसलमानों के प्रथम राज्य में उस समय के हाकिम ने इस दीवार की अवस्था जानने के लिए एक कमीशन भेजा था जिसके सफर का हाल दुनिया भर के अखबारों से प्रकट हुआ है।

"संक्षेप में यह कि कई आदमी मरे परन्तु ठीक तौर पर नहीं मालूम हो सका कि उस दीवार के उस तरफ क्या हाल-चाल है ।

"उसकी तारीफ इस तरह पर है कि उस दीवार की ऊँचाई पर कोई आदमी जा नहीं सकता और जो जाता है वह हँसते-हँसते दूसरी तरफ गिर जाता है, यदि गिरने से किसी तरह रोक लिया जाय तो जोर से हँसते-हंसते मर जाता है ।

"यह एक तिलिस्म कहा जाता है या कोई और बात है, पर यदि सोचा जाय तो यह कहा जायगा कि अवश्य किसी बुद्धिमान आदमी ने हकीमी कायदे से इस विचित्र दीवार को बनाया है।

"यह दीवार अवश्य कीमियाई विद्या से मदद लेकर बनाई गई होगी।"

यह बात जो प्रसिद्ध है कि दीवार के उस तरफ जिन्न और परी रहते हैं जिनको देखकर मनुष्य पागल हो जाता है और उसी तरफ को दिल दे देता है, यह बात ठीक हो सकती है परन्तु हँसता क्यों है यह सोचने की बात है।

कश्मीर में केशर के खेतों की भी यही तारीफ है । तो क्या उसकी सुगन्ध वहाँ जाकर एकत्र होती है, या वहाँ भी केशर के खेत हैं जिससे हंसी आती है ? परन्तु ऐसा नहीं है क्योंकि ऐसा होता तो यह भी मशहूर होता कि वहाँ केशर की महक आती है। नहीं-नहीं, कुछ और ही हिकमत है जैसा कि हिन्दुस्तान में किसी शहर के मसजिद की मीनारों में यह तारीफ थी कि ऊपर खड़े होकर पानी का भरा गिलास हाथ में लो तो वह आप ही आप छलकने लगता था। इसकी जाँच के लिए एक इंजीनियर साहब ने उसे गिरबा दिया और फिर उसी जगह पर बनवाया परन्तु वह बात न रही। या आगरा में ताजबीबी के रौजे के फव्वारों के नल जो मिट्टी के खरनचे की तरह थे जैसे खपरैल