पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२२७

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एक चाबुक लिए खड़ी है और उसके सामने की तरफ कुछ दूर हटकर कई मोटे-ताजे आदमी खड़े हैं जो किशोरी को पकड़ कर बाँधना चाहते हैं, मगर वह किसी के काबू में नहीं आती । ताल ठोंक-ठोंककर लोग उसकी तरफ बढ़ते हैं मगर वह कोड़ा मार-मारकर हटा देती है । ऐसी अवस्था में उन आदमियों की मुद्रा (जो किशोरी को पकड़ना चाहते थे ऐसी खराब होती थी कि हँसी रोके नहीं रुकती, तथा उस भाप की बदौलत आया हुआ नशा हँसी को और भी बढ़ा देता था। पैरों में पीछे हटने की ताकत न थी, मगर भीतर की तरफ कूद पड़ने में किसी तरह का हर्ज भी नहीं मालूम पड़ता था क्योंकि जमीन ज्यादा नीची न थी, और इसके अतिरिक्त किशोरी को बचाना भी बहुत ही जरूरी था, अतः मैं अन्दर की तरफ कूद पड़ा, बल्कि यों कहो कि ढुलक पड़ा और उसके बाद तन-बदन की सुध न रही । मैं नहीं जानता कि उसके बाद क्या हुआ और क्योंकर हुआ। हां जब मैं होश में आया तो अपने को कैदखाने में पाया।

भूतनाथ--अच्छा तो इससे तुमने क्या नतीजा निकाला ?

देवीसिंह--कुछ भी नहीं, मैंने केवल इतना ही खयाल किया कि किसी दवा के नशे से दिमाग खराब हो जाता है ।

भूतनाथ--केवल इतना ही नहीं है, मैंने इससे कुछ ज्यादा खयाल किया है, खैर कोई चिन्ता नहीं कल देखा जायेगा, सौ में नव्वै दर्जे तो मैं जरूर बाहरी रास्ते ही से लौट आऊँगा । यहाँ उस तिलिस्मी मकान के अन्दर लोगों ने जो कुछ देखा है वह भी करीब-करीब वैसा ही है जैसा तुमने देखा था। तुमने किशोरी को देखा और इन लोगों ने किसी दूसरी औरत को देखा, बात एक ही है ।

इसी तरह की बातें करते हुए दोनों ऐयार कुछ देर तक सुबह की हवा खाते रहे, और इसके बाद मकान की तरफ लौटे । जब महाराज के पास गये तो पुनः सुनने में आया कि ऐयारों को तिलिस्मी मकान पर चढ़ने की आज्ञा हुई है।


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दिन अनुमान दो घंटे के चढ़ चुका है। महाराज सुरेन्द्रसिंह, राजा बीरेन्द्रसिंह, गोपालसिंह, इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह वगैरह खिड़कियों में बैठे उस तिलिस्मी मकान की तरफ देख रहे हैं, जिसके अन्दर लोग हँसते-हँसते कूद पड़ते हैं। उस मकान के नीचे बहुत-सी कुर्सियां रखी हुई हैं जिन पर हमारे ऐयार तथा और भी कई प्रतिष्ठित आदमी बैठे हुए हैं और सब लोग इस बात का इन्तजार कर रहे हैं कि इस मकान पर बारी-बारी से ऐयार लोग चढ़ें और अपनी अक्ल का नमूना दिखावें ।

और ऐयारों की पोशाक तो मामूली ढंग की है, मगर भूतनाथ इस समय कुछ अजब ढंग की पोशाक पहने हुए है। सिवाय चेहरे के उसका कोई अंग खुला हुआ नहीं है। ढीला-ढीला मोटा पायजाम पौर गॅवारू रूईदार चपकन के अतिरिक्त बहुत बड़ा काला मुंडासा बाँधे हुए है, जिसका छिला सिरा पीठ पर से होता हुआ जमीन तक लटक