आज ईश्वर की कृपा से ये लोग हमारे साथ हैं, बल्कि हमारे अंग हैं । इससे कहा भी जा सकता है कि भूतनाथ हमारा ही कसूरवार है। मगर फिर भी हम इसके कसूरों की माफी का अख्तियार इन्हीं दोनों अर्थात् गोपालसिंह और इन्द्रदेव को देते हैं। ये दोनों अगर भूतनाथ का कसूर माफ कर दें तो हम इस बात को खुशी से मंजूर कर लेंगे । हाँ,लोग यह कह सकते हैं कि इस माफी देने में बलभद्रसिंह को भी शरीक करना चाहिए था। मगर हम इस बात को जरूरी नहीं समझते, क्योंकि इस समय बलभद्रसिंह को कैद से छुड़ा कर भूतनाथ ने उन पर बल्कि सच तो ये है कि हम लोगों पर भी बहुत बड़ा अहसान किया है, इसलिए अगर बलभद्र सिंह को इससे कुछ रंज हो तो भी माफी देने में वे कुछ उज्र नहीं कर सकते।
गोपालसिंह-इसी तरह हम दोनों को भी माफी देने में किसी तरह का उज्र न होना चाहिए। इस समय भूतनाथ ने मेरी बहुत बड़ी मदद की है और मेरे साथ मिल कर ऐसे अनूठे काम किये हैं कि जिनकी तारीफ सहज में नहीं हो सकती । इस हमदर्दी और मदद के सामने उन कसूरों की कुछ भी हकीकत नहीं, अतः मैं इससे बहुत प्रसन्न हूँ और सच्चे दिल से इसे माफी देता हूं।
इन्द्रदेव-माफी देनी ही चाहिए ! जब आप माफी दे चुके तो मैं भी दे चुका!ईश्वर भूतनाथ पर कृपा करें, जिससे अपनी नेकनामी बढ़ाने का शौक इसके दिल में दिन-दिन तरक्की करता रहे। सच बात तो यह है कि कमलिनी की बदौलत इस समय हम लोगों को यह शुभ दिन देखने में आया और जब कमलिनी ने इससे प्रसन्न हो इसके कसूर माफ कर दिए तो हम लोगों को बाल-बराबर भी उज्र नहीं हो सकता।
जीतसिंह-बेशक, बेशक !
सुरेन्द्रसिंह-इसमें कुछ भी शक नहीं ! (भूतनाथ की तरफ देख कर) अच्छा, भूतनाथ, तुम्हारा सब कसूर माफ किया जाता है। इन दिनों हम लोगों के साथ तुमने जो-जो नेकियां की हैं उनके बदले में हम तुम पर भरोसा करके तुम्हें अपना ऐयार बनाते हैं ।
इतना कहकर सुरेन्द्र सिंह उठ बैठे और अपने सिरहाने के नीचे से अपना खास बेशकीमत खंजर निकालकर भूतनाथ की तरफ बढ़ाया। भूतनाथ खड़ा हो गया और झुककर सलाम करने के बाद खंजर ले लिया और इसके बाद जीतसिंह, गोपालसिंह और इन्द्रदेव को भी सलाम किया। जीतसिंह ने अपना खास ऐयारी का बटुआ भूतनाथ को दिया। गोपालसिंह ने वह तिलिस्मी तमंचा, जिससे आखिरी वक्त मायारानी ने काम लिया था और जो इस समय उनके पास था, गोली बनाने की तरकीब सहित भूतनाथ को दिया और इन्द्रदेव ने यह कहकर उसे गले से लगा लिया कि “मुझ फकीर के पास इससे बढ़कर और कोई चीज नहीं है कि मैं फिर तुम्हें अपना भाई बना कर ईश्वर से प्रार्थना करूं कि अब इस नाते में किसी तरह का फर्क न पड़ने पावे।"
इसके बाद दोनों आदमी अपनी-अपनी जगह पर बैठ गये और भूतनाथ ने हाथ जोड़कर सुरेन्द्रसिंह से कहा, "आज मैं समझता हूँ कि मुझ-सा खुशनसीब इस दुनिया में दूसरा कोई भी नहीं है। बदनसीबी के चक्कर में पड़कर मैं वर्षों परेशान रहा, तरह-तरह की तकलीफें उठाई, पहाड़-पहाड़ और जंगल-जंगल मारा फिरा, साथ ही इसके पैदा भी