उम्मीद अपने साथ लेते जायँ?
भूतनाथ––मुझसे आप हर तरह की उम्मीद कर सकते हैं। जो आप कहेंगे मैं वही करूँगा बल्कि आपके घर चलूँगा।
मैं––अगर ऐसा करो तो मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहे।
भूतनाथ––बेशक मैं ऐसा ही करूँगा मगर पहले आप यह बता दें कि आपने मेरा कसूर माफ किया या नहीं?
मैं––हाँ, मैंने माफ किया।
भूतनाथ––अच्छा तो अब मेरे डेरे पर चलिये।
मैं––तुम्हारा डेरा कहाँ पर है?
भूतनाथ––यहाँ से थोड़ी ही दूर पर।
मैं––खैर, चलो मैं तैयार हूँ, मगर पहले इस बात का वायदा कर दो कि लौटते समय मेरे साथ चलोगे।
भूतनाथ––जरूर चलूँगा।
"कहकर भूतनाथ चल पड़ा हम दोनों भी उसके पीछे-पीछे रवाना हुए।
"आप लोग खयाल करते होंगे कि भूतनाथ ने हम दोनों को उसी जगह क्यों नहीं गिरफ्तार कर लिया मगर यह बात भूतनाथ के किए नहीं हो सकती थी। यद्यपि उसके साथ कई सिपाही या नौकर भी मौजूद थे मगर फिर भी वह इस बात को खूब समझता था कि इस खुले मैदान में दलीपशाह और अर्जुनसिंह को एक साथ गिरफ्तार कर लेना उसकी सामर्थ्य के बाहर है। साथ ही इसके यह भी कह देना जरूरी है कि उस समय तक भूतनाथ को इस बात की खबर न थी उसके बटुए को चुरा लेने वाला यही अर्जुनसिंह है। उस समय तक क्या बल्कि अब तक भूतनाथ को इस बात की खबर न थी। उस दिन जब स्वयं अर्जुनसिंह ने अपनी जुबान से कहा तब मालूम हुआ।
"कोस-भर से ज्यादा हम लोग भूतनाथ के पीछे-पीछे चले गये और इसके बाद एक भयानक सुनसान और उजाड़ घाटी में पहुँचे जो दो पहाड़ियों के बीच में थी। वहाँ से कुछ दूर तक घूम-घुमौवे रास्ते पर चलकर भूतनाथ के डेरे पर पहुँचे। वह एक ऐसा स्थान था जहाँ किसी मुसाफिर का पहुँचना कठिन ही नहीं, बल्कि असम्भव था। जिस खोह में भूतनाथ का डेरा था वह बहुत बड़ी और बीस-पचीस आदमियों के रहने लायक थी और वास्तव में इतने ही आदमियों साथ वह वहाँ रहता था।
"वहाँ भूतनाथ ने हन दोनों की बड़ी खातिर की और बार-बार आजिजी करता और माफी माँगता रहा। खाने-पीने का सब सामान वहाँ मौजूद था, अतः इशारा पाकर भूतनाथ के आदमियों ने तरह-तरह का खाना बनाना आरम्भ कर दिया और कई आदमी नहाने-धोने का सामान दुरुस्त करने लगे।"
"हम दोनों बहुत प्रसन्न थे और समझते थे कि अब भूतनाथ ठीक रास्ते पर आ जायेगा, अतः हम लोग जब तक संध्या-पूजन से निश्चिन्त हुए, तव तक भोजन भी तैयार हुआ और से।फिक्री के साथ हम तीनों आदमियों ने एक साथ भोजन किया। इसके बाद निश्चिन्ती से बैठकर बातचीत करने लगे।