पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२१३

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हुई थी बयान किया। इन्होंने भी यह राय पसन्द की और इस काम के लिए मेरे सा जमानिया चलने को तैयार हो गये, अतः हम दोनों आदमी भेष बदलकर घर से निक और जमानिया की तरफ रवाना हुए।

"संध्या हुआ ही चाहती थी जब हम दोनों आदमी जमानिया शहर के पास पहुँचे, उस समय सामने से दारोगा का एक सिपाही आता हुआ दिखाई पड़ा। हम लोग बहुत खुश हुए और अर्जुनसिंह ने कहा-'लो भाई सगुन तो बहुत अच्छा मिला कि शिकार सामने आ पहुँचा और चारों तरफ सन्नाटा भी छाया हुआ है। इस समय इसे जरूर गिरफ्तार करना चाहिए, इसके बाद इसी की सूरत बनकर दारोगा के पास पहुँचना और उसे धोखा देना चाहिए।'

"हम दो आदमी थे और सिपाही अकेला था, ऐसी अवस्था में किसी तरह की चालबाजी की जरूरत न थी, केवल तकरार कर लेना ही काफी था। हुज्जत और तकरार करने के लिए किसी मसाले की जरूरत नहीं पड़ती, जरा छेड़ देना ही काफी होता है । पास आने पर अर्जुनसिंह ने जान-बूझकर उसे धक्का दे दिया और वह भी दारोगा के घमंड पर फूला हम लोगों से उलझ पड़ा। आखिर हम लोगों ने उसे गिरफ्तार कर लिया और बेहोश करके वहाँ से दूर एक सन्नाटे के जंगल में ले जाकर उसकी तलाशी लेने लगे । उसके पास से भूतनाथ के नाम की एक चिट्ठी निकली जो खास दारोगा के हाथ की लिखी हुई थी और जिसमें यह लिखा हुआ था-प्यारे भूतनाथ,

कई दिनों से हम तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं । अब ठीक-ठीक बताओ कि कब मुलाकात होगी और कब तक काम हो जाने की उम्मीद है।'

"इस चिट्ठी को पढ़कर हम दोनों ने सलाह की कि इस आदमी को छोड़ देना चाहिए और इसके पीछे चलकर देखना चाहिए कि भूतनाथ कहाँ रहता है । उसका पता लग जाने से बहुत काम निकलेगा।

"हम दोनों ने वह चिट्ठी फिर उस आदमी की जेब में रख दी और उसे उठाकर पुनः सड़क पर लाकर डाल दिया जहां उसे गिरफ्तार किया था। इसके बाद लखलखा सुंघाकर हम दोनों दूर हटकर आड़ में खड़े हो गये और देखने लगे कि वह होश में आकर क्या करता है। उस समय रात आधी से ज्यादा जा चुकी थी।

"होश में आने के बाद आदमी ताज्जुब और तरदुद में थोड़ी देर तक इधर-उधर घूमता रहा और इसके बाद आगे की तरफ चल पड़ा। हम लोग भी आड़ देते हुए उसके पीछे-पीछे चल पड़े।

"आसमान पर सुबह की सुफेदी फैलना ही चाहती थी जब हम लोग एक घने और सुहावने जंगल में पहुँचे । थोड़ी देर तक चलकर वह आदमी एक पत्थर की चट्टान पर बैठ गया। मालूम होता था कि थक गया है और कुछ देर तक सुस्ताना चाहता है, मगर ऐसा न था। लाचार हम दोनों भी उसके पास ही आड़ देकर बैठ गये और उसी समय पेड़ों की आड़ में से कई आदमियों ने निकलकर हम दोनों को घेर लिया। उन सभी के हाथों में नंगी तलवारें और चेहरे पर नकाबें पड़ी हुई थीं।