गिरिजाकुमार--मगर मुझसे आपको किसी तरह की दुश्मनी न होनी चाहिए, क्योंकि मैंने आपका कुछ नुकसान नहीं किया है ।
भूतनाथ--सिवाय इसके कि मुझे गिरफ्तार करने की फिक्र में थे ।
गिरिजाकुमार--कदापि नहीं, यह तो एक तरकीब थी जिससे कि मैंने अपने को कैद होने से बचा लिया, यही सबब था कि इस समय मैंने इसे (बिहारीसिंह को) धोखा देकर बेहोशी का दवा दी और इसे बाँधकर अपने घर ले जाने वाला था।
भूतनाथ--तुम्हारी बातें मान लेने के योग्य हैं मगर मैं इस बात को भी खूब जानता हूँ कि तुम बड़े बातूनी हो और बातों के जाल में बड़े-बड़े चालाकों को फंसाकर उल्लू बना सकते हो।
"इतना कहकर भूतनाथ ने अपनी जेब में से कपड़े का एक टुकड़ा निकालकर गिरिजाकुमार के मुंह पर रख दिया और फिर गिरिजाकुमार को दीन-दुनिया की कुछ भी खबर न रही। इसके बाद क्या हुआ सो उसे मालूम नहीं और न मैं ही जानता हूँ, क्योंकि इस विषय में मैं वही बयान करूंगा जो गिरिजाकुमार ने मुझसे कहा था ।
"हम दोनों मित्र जो उस समय छिपे हुए थे बैठे-बैठे घबड़ा गये और जब लाचार होकर उस बाग में गये तो न गिरिजाकुमार को देखा न बिहारीसिंह को पाया। कुछ पता न लगा कि दोनों कहाँ गये क्या हुए या उन पर कैसी बीती । बहुत खोजा, पता लगाया, कई दिन तक उस इलाके में घूमते रहे, मगर नतीजा कुछ न निकला। लाचार अफसोस करते हुए अपने घर की तरफ लौट आए ।
"अब बहुत विलम्ब हो गया, महाराज भी घबड़ा गये होंगे । (जीतसिंह की तरफ देखकर) यदि आज्ञा हो तो मैं अपनी राम-कहानी यहीं पर रोक दूं और जो कुछ बाकी है उसे कल के दरबार में बयान करूँ।"
इतना कहकर दलीपशाह चुप हो गया और महाराज का इशारा पाकर जीत-सिंह ने उसकी बात मंजूर कर ली। दरबार बर्खास्त हुआ और लोग अपने-अपने डेरे की तरफ रवाना हुए
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दूसरे दिन मामूली ढंग पर दरबार लगा और दलीपशाह ने इस तरह अपना हाल बयान करना शुरू किया--
"कई दिन बीत गये मगर मुझे गिरिजाकुमार का कुछ पता न लगा और न इस बात का ही खयाल हुआ कि वह भूतनाथ के कब्जे में चला गया होगा। हाँ, जब मैं गिरजाकुमार की खोज में सूरत बदल कर धूम रहा था,तब इस बात का पता लग गया कि भूतनाथ मेरे पीछे पड़ा हुआ है और दारोगा से मिलकर मुझे गिरफ्तार तरफ रवाना हुए। करा देने का बन्दोबस्त कर रहा है ।
"उस मामले के कई सप्ताह बाद एक दिन आधी रात के समय भूतनाथ पागलों