हलवाई की एक छोटी-सी दुकान भी थी। गांव के बाहरी प्रान्त में जमींदारों के देहाती ढंग के बगीचे थे और पास ही में पलाश का छोटा-सा जंगल भी था। संध्या होने में घण्टे भर की देर थी और बिहारीसिंह चाहता था हम लोग बराबर चले जायं, दो-तीन घण्टे रात जाते बेगम के मकान तक पहुँच ही जायेंगे, मगर गिरिजाकुमार को यह बात मंजूर न थी । उसने कहा कि मैं बहुत थक गया हूँ और अब एक कोस भी आगे नहीं चल सकता, इसलिए यही अच्छा होगा कि आज की रात इसी गांव के बाहर किसी बगीचे अथवा जंगल में बिता दी जाय ।
"यद्यपि दोनों की राय दो तरह की थी, मगर बिहारीसिंह को लाचार हो गिरिजा-कुमार की बात माननी पड़ी और यह निश्चय करना ही पड़ा कि आज की रात अमुक बगीचे में बिताई जायगी।अस्तु संध्या हो जाने पर दोनों आदमी गाँव में हलवाई की दुकान पर गये और वहां पूरी-तरकारी बनवाकर पुनः गांव के बाहर चले आए।
चाँदनी निकली हुई थी और चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। बिहारीसिंह और गिरिजाकुमार एक पेड़ के नीचे बैठे हुए धीरे-धीरे भोजन और निम्नलिखित बातें करते जाते थे-
गिरिजाकुमार--आज की भूख में ये पूरियाँ बड़ा ही मजा दे रही हैं।
बिहारीसिंह--यह के भूख ही कारण नहीं, बल्कि बनी भी अच्छी हैं, इसके अतिरिक्त तुमने आज बूटी (भांग) भी गहरी पिला दी है।
गिरिजाकुमार--अजी, इसी बूटी की बदौलत तो सफर की हरारत मिटेगी।
बिहारीसिंह--मगर नशा तो तेज हो रहा है और अभी तक बढ़ता ही जाता है ।
गिरिजाकुमार--तो हम लोगों को करना ही क्या है ?
बिहारीसिंह--और नहीं तो अपने कपड़े-लत्ते और बटुए का खयाल तो है ही।
गिरिजाकुमार--(हँसकर) मजा तो तब हो जो इस समय भूतनाथ से सामना हो जाय।
बिहारीसिंह--हर्ज ही क्या है ? मैं इस समय भी लड़ने को तैयार हूँ। मगर वह बड़ा ही ताकतवर और काइयाँ ऐयार है।
गिरिजाकुमार--उसकी कदर तो राजा गोपालसिंह जानते थे।
बिहारीसिंह--मेरे खयाल से तो यह बात नहीं है ।
गिरिजाकुमार--तुम्हें खबर नहीं है, अगर कभी मौका मिला तो मैं इस बात को साबित कर दूंगा।
बिहारीसिंह--किस ढंग से साबित करोगे?
गिरिजाकुमार--खुद राजा गोपालसिंह की जबान से ।
बिहारीसिंह--(हँसकर) क्या भंग के नशे में पागल हो गये हो ? राजा गोपाल-सिंह अब कहाँ हैं ?
गिरिजाकुमार--असल बात तो यह है कि मुझे राजा गोपालसिंह के मरने का विश्वास ही नहीं है।
बिहारीसिंह--(चौकन्ना होकर) सो क्यों ? तुम्हारे पास उनके जीते रहने का