सकता हूँ।
बिहारीसिंह--(गिरिजाकुमार के हाथ-पैर खोलकर) तुम और जो कुछ चाहोगे,बाबाजी देंगे, मगर इनकी बातों से इनकार न करो।
गिरिजाकुमार--(अच्छी तरह बैठकर) ठीक है, मगर मैं विशेष धन-दौलत नहीं चाहता, और न मुझे इसकी जरूरत ही है, क्योंकि ईश्वर ने मुझे बिल्कुल ही अकेला कर दिया है-न बाप, न मां, न भाई, न भौजाई, ऐसी अवस्था में मैं धन-दौलत लेकर क्या करूंगा? मगर दो-तीन बातों का इकरार लिए बिना मैं दारोगा साहब को कुछ भी नहीं बताऊँगा, चाहे मार ही डाला जाऊँ !
दारोगा--(मुस्कराकर) अख्छा-अच्छा बताओ, तुम क्या चाहते हो?
गिरिजाकुमार--एक तो यह कि उसकी खोज में मैं अगुआ रखा जाऊँ ।
दारोगा-मंजूर है, अच्छा और बताओ।
गिरिजाकुमार--बिहारीसिंह मेरी मदद के लिए दिये जायें, क्योंकि मैं भी इन्हें पसन्द करता हूँ।
दारोगा--यह भी कबूल है, और बोलो।
गिरिजाकुमार--जहाँ तक जल्द हो सके मैं गुरुदक्षिणा के बोझ से हलका किया जाऊँ, क्योंकि इसके लिए मैं जोश में आकर बहुत बुरी कसम खा चुका हूँ । यद्यपि गुरुजी मना करते थे कि तुम कसम न खाओ, तुम्हारे जैसे जिद्दी आदमी का कसम खाना अच्छा नहीं है !
दारोगा--वेशक तुम जो चाहते हो वही होगा, और कहो !
गिरिजाकुमार--गुरुदक्षिणा से छुट्टी पाकर मैं ऐयार की पदवी पा जाऊँ तो मुझे यहां किसी तरह नौकरी मिल जाय जिसमें मेरा गुजारा चले, और मेरी शादी करा दी जाय । यह मैं इसलिए कहता हूँ कि मुझे शादी करने का शौक है और मैं अपनी बिरा- दरी में ऐसा गरीव हूँ कि कोई मुझे लड़की देना कबूल न करेगा।
दारोगा--यह सब कुछ हो जायगा, तुम कुछ चिन्ता न करो। और फिर तुम गरीब भी न रहोगे । अच्छा बताओ, और भी कुछ चाहते हो!
गिरिजाकुमार--एक बात और है ।
दारोगा--वह भी कह डालो।
गिरिजाकुमार--(विहारीसिंह की तरफ इशारा करके)ये हमारे गुरुजी से किसी तरह की दुश्मनी न रखें और मेरे साथ वहां चलने में कोई परहेज न करें। देखिये, अपने दिल का हाल बहुत साफ कह रहा हूँ।
बिहारीसिंह-- ठीक है, ठीक है । जो कुछ तुम कहते हो, मंजूर है।
गिरिजाकुमार--(दारोगा की तरफ देखकर) तो बस, मैं आपका हुक्म बजा लाने के लिए दिलोजान से तैयार हूँ।
दारोगा--अच्छा तो अब उसके दो-तीन ठिकाने जो तुम्हें मालूम हैं, उनका पता चताओ।
गिरिजाकुमार--पता क्या, अव तो मैं खुद इनको (बिहारीसिंह को) अपने साथ