इस बात का पता लगा। रात पहर-भर से कुछ ज्यादा जा चुकी थी जब दारोगा ने नकली बिहारीसिंह अर्थात् गिरिजावुमार को अपने घर बुलाया। नेवारे गिरिजाकुमार को क्या खबर थी कि आज मैं मुसीबत में डाला जाऊंगा। वह बेधड़क मामूली ढंग पर बाबाजी (दारोगा) के मकान पर चला गया और देखा कि दारोगा अकेले ऊँची गद्दी पर बैठा हुआ है और उसके सामने सात-आठ सिपाही तलवार लगाये खड़े हैं । दारोगा का इशारा पाकर गिरिजाकुमार उसके सामने बैठ गया। बैठने के साथ ही उन सब सिपाहियों ने एक साथ गिरिजाकुमार को धर दबाया और बात की बात में हाथ-पैर बांध के छोड़ दिया । बेचारा गिरिजाकुमार अकेला कुछ भी न कर सका और जो कुछ हुआ, उसने चुपचाप बर्दाश्त कर लिया। इसके बाद पारोगा ने ताली बजाई, उसी समय असली बिहारीसिंह कोठरी में से निकलकर बाहर चला आया और गिरिजाकुमार की तरफ देख के बोला, "अब तो तुम समझ गये होंगे कि तुम्हारा भण्डा फूट गया और मैं तुम्हारी कैद से छूट के निकल आया, मगर शाबाश, तुमने बड़ी खूवी के साथ मुझे धोखा देकर गिरफ्तार किया था। अब मेरी पारी है, देखो, मैं किस तरह तुमसे बदला लेता हूँ!"
गिरिजाकुमार-यह तो ऐयारों का काम ही है कि एक-दूसरे को धोखा दिया करते हैं, इसमें अनर्थ क्या हो गया ? मेरा दांव लगा मैंने तुम्हें गिरफ्तार करके कैदखाने में डाल दिया, अब तुम्हारा दांव लगा है तो तुम मुझे कैदखाने में डाल दो। जिस तरह तुम अपनी चालाकी से छूट आये हो, उसी तरह छूटने के लिए मैं भी उद्योग करूंगा।
बिहारीसिंह-सो तो ठीक है, मगर इतना समझ रखो कि हम लोग तुम्हारे साथ मामूली बर्ताव न करेंगे बल्कि हद दर्जे की तकलीफ देंगे।
गिरिजाकुमार-यह तो ऐयारी के कायदे के बाहर है।
बिहारीसिंह-जो भी हो।
गिरिजाकुमार-खैर, कोई हर्ज नहीं, जो कुछ होगा झेलेंगे।
बिहारीसिंह-अगर तुम तकलीफ से बचना चाहो तो मेरी बातों का साफ और सच-सच जवाब दो।
गिरिजाकुमार-वादा तो नहीं करते, मगर जो कुछ पूछना हो पूछो।
बिहारीसिंह-तुम्हारा नाम क्या है?
गिरिजाकुमार-शिवशंकर।
बिहारीसिंह-किसके नौकर हो?
गिरिजाकुमार-किसी के भी नहीं।
बिहारीसिंह-फिर यहाँ किसके काम के लिए आये?
गिरिजाकुमार-गुरुजी के।
बिहारीसिंह-तुम्हारा गुरु कौन है!
गिरिजाकुमार-वही जिसे तुम जान चुके हो और जिसके यहाँ इतने दिनों तक तुम कैद थे।
बिहारीसिंह--अर्जुनसिंह?
गिरिजाकुमार--हाँ।