पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१९३

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उस चिट्ठी का पता जरूर लगा लूंगा, इत्यादि।

"वास्तव में बात भी ऐसी ही थी। इसमें कोई शक नहीं कि उसी चिट्ठी की बदौलत हम लोगों की जान बची रही, यद्यपि तकलीफें हद दर्जे की भोगनी पड़ी मगर जान से मारने की हिम्मत दारोगा को न हुई, क्योंकि उसके दिल में विश्वास करा दिया गया था कि हम लोगों की मण्डली का एक भी आदमी जिस दिन मारा जायगा, उसी दिन वह चिट्ठी तमाम दुनिया में मशहूर हो जायगी, इसका बहुत ही उत्तम प्रबन्ध किया गया है।

"इसके बाद कई दिन बीत गये मगर गिरिजाकुमार की फिर ओर कोई चिट्ठी न आई जिससे एक तरह पर तरवुद हुआ और जी में आया कि अब खुद जमानिया चलकर उसका पता लगाना चाहिए।

दूसरे दिन अपने घर की हिफाजत का इन्तजाम करके मैं बाहर निकला और अर्जुनसिंह के घर पहुंचा । ये उस समय अपने कमरे में अकेले बैठे हुए एक चिट्ठी लिख रहे थे । मुझे देखते ही उठ खड़े हुए और बोले, "वाह-वाह, बहुत ही अच्छा हुआ जो आप आ गये, मैं इस समय आप ही के नाम एक चिट्ठी लिख रहा था और उसे अपने शागिर्द के हाथ आपके पास भेजने वाला था, आइये बैठिये।"

मैं--(बैठकर) क्या कोई नई बात मालूम हुई है?

अर्जुनसिंह--नहीं, बल्कि एक नई बात हो गई। मैं-वह क्या?

अर्जुनसिंह--आज रात को बिहारी सिंह हमारी कैद से निकलकर भाग गया है।

मैं--(घबराकर) यह तो बहुत बुरा हुआ।

अर्जुनसिंह--बेशक बुरा हुआ। जिस समय वह जमानिया पहुंचेगा उस समय बेचारे गिरिजाकुमार पर जो बिहारीसिंह बनकर बैठा हुआ है, आफत आ जायगी और वह भारी मुसीबत में गिरफ्तार हो जायगा। मैं यही खबर देने के लिए आपके पास आदमी भेजने वाला था।

मैं-- आखिर ऐसा हुआ ही क्यों ? हिफाजत में कुछ कसर पड़ गई थी?

अर्जुनसिंह--अब तो ऐसा ही समझना पड़ेगा चाहे उसकी कैसी ही हिफाजत क्यों न की गई हो, मगर असल में यह एक सिपाही की बेईमानी का नतीजा है क्योंकि बिहारी- सिंह के साथ ही वह भी यहाँ से गायब हो गया है। जरूर बिहारीसिंह ने उसे लालच देकर अपना पक्षपाती बना लिया होगा।

मैं--खैर, जो कुछ होना था वह तो हो गया। अब किसी तरह गिरिजाकुमार को बचाना चाहिए क्योंकि असली बिहारीसिंह के जमानिया पहुंचते ही नकली बिहारी- सिंह (गिरिजाकुमार) का भेद खुल जायगा और वह मजबूर करके कैदखाने में झोंक दिया जायगा।

अजुनसिंह--मैं खुद यही बात कह चुका हूँ, खैर, अब इस विषय में विशेष सोच- विचार न करके जहाँ तक हो जल्द जमानिया पहुंचना चाहिए।

मैं--मैं तो तैयार ही हैं, क्योंकि अभी कमर भी नहीं खोली।