कोशिश की मगर उसके खास बाग के अन्दर न जा सका। लाचार उसने मायारानी के ऐयार बिहारीसिंह और हरनामसिंह का पीछा किया और दो ही तीन दिन की मेहनत में धोखा देकर बिहारीसिंह को गिरफ्तार कर लिया और उसे अर्जुनसिंह के यहाँ पहुँचा कर मेरे पास चला आया।
'ऊपर लिखी सब बातें बयान करके गिरिजाकुमार चुप हो गया और तब मैंने उससे कहा, 'बिहारीसिंह को तुमने गिरफ्तार कर लिया, यह बहुत बड़ा काम हुआ और जब तुम बिहारीसिंह बनकर वहाँ जाओगे और चालाकी से उन लोगों में मिल-जुल कर अपने को छिपा सकोगे, तो बेशक बहुत-सी छिपी बातों का पता लग जायगा और हम लोगों के साथ जो कुछ दारोगा करना चाहता है वह भी मालूम हो जायगा।"
गिरिजाकुमार–-बेशक ऐसा ही है । मैं आपसे विदा होकर अर्जुनसिंह के यहाँ जाऊँगा और फिर बिहारीसिंह बनकर जमानिया पहुंचूंगा। मेरे जी में तो यही आया था कि मैं कम्बख्त दारोगा को सीधे यमलोक पहुँचा दूं मगर यह काम आपकी आज्ञा के बिना नहीं कर सकता था।
मैं--नहीं-नहीं, इन्द्रदेव की आज्ञा के बिना यह काम कभी न करना चाहिए, पहले वहाँ का असल हाल तो मालूम करो, फिर इस बारे में इन्द्रदेव से बातचीत करेंगे।
गिरिजाकुमार--जो आज्ञा।
"इसके बाद और भी तरह-तरह की बातचीत होती रही । उस दिन गिरिजा- कुमार मेरे ही घर पर रहा दूसरे दिन मुझसे बिदा हो अर्जुनसिंह के पास चला गया।"
इसके वाद आठ दिन तक' मुझे किसी नई बात का पता नहीं लगा। आखिर जब गिरिजाकुमार का पत्र आया तब मालूम हुआ कि वह बिहारीसिंह बनकर बड़ी खूबी के साथ उन लोगों में मिल गया है। उन लोगों की गुप्त कमेटी में भी बैठकर हर एक बात में राय दिया करता है जिससे बहुत जल्द कुल भेदों का पता लग जाने की आशा होती है । गिरिजाकुमार ने यह भी लिखा कि दारोगा को उस चिट्ठी की बड़ी ही चिन्ता लगी हुई है जो मनोरमा के नाम से राजा गोपालसिंह को मार डालने के लिए मैंने (गिरिजा- कुमार ने) जबर्दस्ती उससे लिखवा ली थी। वह चाहता है कि जिस तरह हो वह चिट्ठी उसके हाथ लग जाय और इस काम के लिए लाखों रुपये खर्च करने को तैयार है । वह कहता है और वास्तव में ठीक कहता है कि 'उस चिट्ठी का हाल अगर लोगों को मालूम हो जायगा तो दूसरों की कौन कहे, जमानिया की रिआया ही मुझे बुरी तरह से मारने के लिए तैयार हो जायगी। एक दिन हरनामसिंह ने उसे राय दी कि दलीपशाह को मार डालना चाहिए । इस पर बह बहुत ही झुंझलाया और बोला कि 'जब तक वह चिट्ठी मेरे हाथ न लग जाय तब तक दलीपशाह और उसके साथियों को मार डालने से मुझे क्या फायदा होगा। बल्कि मैं और भी बहुत जल्द बरबाद हो जाऊंगा क्योंकि दलीपशाह के मारे जाने से उसके दोस्त लोग जरूर उस चिट्ठी को मशहूर कर देंगे, इसलिए जब तक वह चिट्ठी अपने कब्जे में न आ जाय तब तक किसी के मारने का ध्यान भी मन में न लाना चाहिए । हाँ, दलीपशाह को गिरफ्तार करने से बेशक फायदा पहुँच सकता है । अगर वह कब्जे में आ जायगा तो उसे तरह-तरह की तकलीफ पहुँचाकर किसी प्रकार