बातें करने के लिए आया हूँ।"
दारोगा घबरा गया और उसकी बातों का कुछ विशेष जवाब न देकर बोला,"खैर कहो, क्या कहते हो।"
गिरिजाकुमार--मनोरमा और मायारानी के फेर में पड़कर तुमने राजा गोपालसिंह को मरवा डाला, इसका नतीजा एक-न-एक दिन तुम्हें भोगना ही पड़ेगा।मगर अब मैं यह पूछता हूं कि जिनके डर से तुमने लक्ष्मीदेवी और बलभद्रसिंह को कैद कर रखा था वे तो मर ही गये। अब अगर तुम उन दोनों को छोड़ भी दोगे तो तुम्हारा क्या बिगड़ेगा?
दारोगा--(ताज्जुब में आकर) मेरी समझ में नहीं आता कि तुम कौन हो और क्या कह रहे हो?
गिरिजाकुमार--मैं कौन हूँ यह जानने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं, मगर क्या तुम कह सकते हो कि जो कुछ मैंने कहा है वह सब झूठ है ?
दारोगा–-बेशक झूठ है तुम्हारे पास इन बातों का क्या सबूत है ?
गिरिजाकुमार--जयपाल और हेलासिंह के बीच में जो कुछ लिखा-पढ़ी हुई है उसके अतिरिक्त वह चिट्ठी इस समय भी मेरे पास मौजूद है जो राजा गोपालसिंह को मार डालने के लिए तुमने मनोरमा को लिख दी थी।
दारोगा-—मैंने कोई चिट्ठी नहीं लिखी थी, मालूम होता है कि दिलीपशाह और भूतनाथ वगैरह मिल-जुल कर मुझ पर जाल बाँधा चाहते हैं और तुम उन्हीं में से किसी के नौकर हो।
गिरिजाकुमार-- भूतनाथ तो मर गया, अब तुम उसे क्यों बदनाम करते हो ?
दारोगा--भूतनाथ जैसा मरा है सो मैं खूब जानता हूँ, अगर खुद मुझसे मुलाकात न हुई होती तो शायद मैं धोखे में आ भी जाता।
गिरिजाकुमार--भूतनाथ तुम्हारे पास न आया होगा, किसी दूसरे आदमी ने सूरत बदलकर तुम्हें धोखा दिया होगा, वह बेशक मर गया !
दारोगा--(सिर हिलाकर) हाँ ठीक है, शायद ऐसा ही हो । मगर उन सब बातों से तुम्हें मतलब ही क्या है और तुम मेरे पास किस लिए आये हो सो कहो ।
गिरिजासिंह-मैं केवल इसीलिए आया हूँ कि लक्ष्मीदेवी और बलभद्रसिंह को छोड़ देने के लिए तुमसे प्रार्थना करूँ।
दारोगा--पहले तुम अपना ठीक-ठीक परिचय दो, तब मैं तुम्हारी बातों का जवाब दूंगा।
गिरिजासिंह--अपना ठीक परिचय तो नहीं दे सकता।
दारोगा--तब मैं तुम्हारी बातों का जवाब भी नहीं दे सकता।
"इतना कहकर दारोगा पीछे की तरफ हटा और अपने आदमियों को आवाज दो मगर गिरिजाकुमार ने झपटकर एक मुक्का दारोगा की गर्दन पर जमाया और मारने के बाद तेजी के साथ बाग के बाहर निकल गया ।
"उसके दूसरे दिन गिरिजाकुमार ने उसी तरह मायारानी से भी मिलने की