मैं––खैर यह बताओ कि तुमने किन-किन बातों का पता लगाया और मुझसे बिदा होकर तुम दारोगा के पीछे कहाँ तक गए?
गिरिजाकुमार––जयपाल को साथ लिए हुए दारोगा सीधे मनोरमा के मकान पर चला गया। उस समय मनोरमा वहाँ न थी, वह दारोगा के आने के तीन पहर बाद रात के समय अपने मकान पर पहुँची। मैं भी छिपकर किसी-न-किसी तरह उस मकान में दाखिल हो गया। रात को दारोगा और मनोरमा में खूब हुज्जत हुई, मगर अन्त में मनोरमा ने उसे विश्वास दिला दिया कि राजा गोपालसिंह को मारने के विषय में उससे जबर्दस्ती पुर्जा लिखा लेने वाला मेरा आदमी न था बल्कि वह कोई और था जिसे मैं नहीं जानती। दारोगा ने बहुत सोच-विचार कर विश्वास कर लिया कि यह काम भूतनाथ का है। इसके बाद उन दोनों में जो कुछ बातें हुईं उनसे यही मालूम हुआ कि गोपालसिंह जरूर मर गये और दारोगा को भी यही विश्वास है, मगर मेरे दिल में यह बात नहीं बैठती, खैर, जो कुछ हो। उसके दूसरे दिन मनोरमा के मकान में से एक कैदी निकाला गया जिसे बेहोश करके जयपाल ने बेगम के मकान में पहुँचा दिया। मैंने उसे पहचानने के लिए बहुत कुछ उद्योग किया मगर पहचान न सका क्योंकि उसे गुप्त रखने में उन्होंने बहुत कोशिश की थी, मगर मुझे गुमान होता है कि यह जरूर बलभद्रसिंह होगा। अगर वह दो-दिन भी बेगम के मकान में रहता तो मैं जरूर निश्चय कर लेता मगर न मालूम किस वक्त और कहाँ बेगम ने उसे पहुँचवा दिया कि मुझे इस बात का कुछ भी पता न लगा, हाँ इतना जरूर मालूम हो गया कि दारोगा भूतनाथ को फँसाने के फेर में पड़ा हुआ है और चाहता है किसी तरह भूतनाथ मार डाला जाय।
"इन कामों से छुट्टी पाकर दारोगा अकेला अर्जुनसिंह के मकान पर गया, इनसे बड़ी नरमी और खुशामद के साथ मुलाकात की, और देर तक मीठी-मीठी बातें करता रहा जिसका तत्व यह था कि तुम दलीपशाह को साथ लेकर मेरी मदद करो और जिस तरह हो सके, भूतनाथ को गिरफ्तार करा दो। अगर तुम दोनों की मदद से भूतनाथ गिरफ्तार हो जायगा तो मैं इसके बदले में दो लाख रुपया तुम दोनों को इनाम दूँगा, इसके अतिरिक्त वह आपके नाम का एक पत्र भी अर्जुनसिंह को दे गया।
"अर्जुनसिंह ने दारोगा का वह पत्र निकाल कर मुझे दिया, मैंने पढ़कर इन्द्रदेव के हाथ में दे दिया और कहा, "इसका मतलब भी वही है जो गिरिजाकुमार ने अभी बयान किया है परन्तु यह कदापि नहीं हो सकता कि मैं भूतनाथ के साथ किसी तरह की बुराई करूँ, हाँ, दारोगा के साथ दिल्लगी अवश्य करूँगा।"
"इसके बाद कुछ देर तक और भी बातचीत होती रही। अन्त में गिरिजाकुमार ने कहा कि मेरे इस सफर का नतीजा कुछ भी न निकला और न मेरी तबीयत ही भरी, आप कृपा करके मुझे जमानिया जाने की इजाजत दीजिए।
"गिरिजाकुमार की दरखास्त मैंने मंजूर कर ली। उस दिन रात-भर हम लोग इन्द्रदेव के यहाँ रहे, दूसरे दिन गिरिजाकुमार जमानिया की तरफ रवाना हुआ और मैं अर्जुनसिंह को साथ लेकर अपने घर मिर्जापुर चला आया।
"घर पहुँचकर मैंने भूतनाथ की स्त्री शान्ता को देखा जो बीमार तथा बहुत ही