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जयपाल घोड़ों पर सवार आते हुए दिखाई पड़े, जिन्हें देखते ही गिरिजाकुमार ने कहा, "देखिए, ये दोनों शैतान कहीं जा रहे हैं, इसमें भी कोई भेद जरूर है, यदि आज्ञा हो तो मैं इनके पीछे जाऊँ।"
दारोगा और जयपाल को देखकर हम दोनों पेड़ की तरफ घूम गये, जिसमें वे हमें पहचान न सकें। जब वे आगे निकल गए, तब मैंने अपना घोड़ा गिरिजाकुमार को देकर कहा, "तुम जल्द सवार होकर इन दोनों का पीछा करो।" और गिरिजाकुमारने ऐसा ही किया।