पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१६४

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कि 'नहीं, किसी दूसरे सबब से ऐसा हुआ होगा। इसके बाद दारोगा साहब ने मुझ पर हुक्म लगाया कि 'तू भरतसिंह को जिस तरह हो सके, जहर दे दे।' मैंने कहा, "बहुत अच्छा ऐसा ही करूंगा, मगर इस काम में पांच-सात दिन जरूर लग जायेंगे।"

इतना कहकर हरदीन ने भूतनाथ से पूछा कि 'कहिए अब क्या करना चाहिए ?' इसके जवाब में भूतनाथ ने कहा कि 'अब पांच-सात दिन के बाद भरतसिंह को झूठ-मूठ हल्ला मचा देना चाहिए कि मुझको किसी ने जहर दे दिया, बल्कि कुछ बीमारी की सी नकल भी करके दिखा देनी चाहिए।'

इसके बाद थोड़ी देर तक और भी भूतनाथ से बातचीत होती रही और किसी दिन फिर मिलने का वादा करके भूतनाथ बिदा हुआ।

इस घटना के बाद कई दफे भूतनाथ से मुलाकात हुई बल्कि कहना चाहिए कि इनके और मेरे बीच में एक प्रकार की मित्रता सी हो गई और इन्होंने कई कामों में मेरी सहायता भी की।

जैसा कि आपस में सलाह हो चुकी थी, मुझे यह मशहूर करना पड़ा कि 'मुझे किसी ने जहर दे दिया। साथ ही इसके कुछ बीमारी की नकल भी की गई, जिसमें मेरे नौकर पर कम्बख्त दारोगा को शक न हो जायें, मगर इसका कोई अच्छा नतीजा न निकला अर्थात् दारोगा को मालूम हो गया कि हरदीन उसका सच्चा साथी और भेदिया नहीं है।

एक दिन रात के समय एकान्त में हरदीन ने मुझसे कहा, "लीजिए अब दारोगा साहब को निश्चय हो गया कि मैं उनका सच्चा साथी नहीं हूँ। आज उसने मुझे अपने पास बुलाया था, मगर मैं गया नहीं क्योंकि मुझे यह निश्चय हो गया कि जाने के साथ ही मैं उसके कब्जे में आ जाऊँगा और फिर किसी तरह जान न बचेगी, यों तो छिटके रहने पर लड़ते-झगड़ते जैसा होगा देखा जायेगा । अतः इस समय मुझे आपसे यह कहना है कि आज से मैं आपके यहां रहना छोड़ दूंगा और तब तक आपके पास न आऊँगा, जब तक मैं दारोगा की तरफ से बेफिक्र न होऊंगा, देखना चाहिए मेरे उससे क्योंकर निपटती है, वह मुझे मारकर निश्चिन्त होता है या मैं उसे जहन्नुम में पहुंचा कर कलेजा ठंडा करता हूँ। मुझे अपने मरने का रंज कुछ भी नहीं है मगर इस बात का अणसोस जरूर है कि मेरे जाने के बाद आपका मददगार यहाँ कोई भी नहीं है और कम्बख्त दारोगा आपको फंसाने में किसी तरह की कसर न करेगा,खैर लाचारी है क्योंकि मेरे यहां रहने से भी आपका कोई कल्याण नहीं हो सकता, यों तो मैं छिप-छिपे कुछ-न-कुछ मदद जरूर करूंगा परन्तु आप जहाँ तक हो सके, खूब होशियारी के साथ काम कीजियेगा।"

मैं-अगर यही बात है तो तुम्हारे भागने की कोई जरूरत नहीं मालूम होती। हम लोग दारोगा के भेदों को खोलकर खुल्लमखुल्ला उसका मुकाबला कर सकते हैं!

हरनामसिंह--इससे कोई फायदा नहीं हो सकता, क्योंकि हम लोगों के पास दारोगा के खिलाफ कोई सबूत नहीं है और न उसके बराबर ताकत ही है।

मैं--क्या इन भेदों को हम गोपाल सिंह से नहीं खोल सकते और ऐसा करने से भी कोई काम नहीं चलेगा?

च० स०6-10