से होशियार रहिए। इतनी होशियारी करने पर आपको मालूम हो जायेगा कि मैं जो कुछ कह रहा हूँ, वह सच है या झूठ।
हरदीन की बातों ने मुझे चक्कर में डाल दिया। कुछ सोचने के बाद मैंने कहा, 'शाबाश हरदीन, तुमने बेशक इस समय मेरी जान बचाई, मगर खैर, तुम चिन्ता न करो और मुझे इस दुष्ट के साथ जाने दो, अब मैं इसके पंजे में न फँसूंगा और जैसा तुमने कहा वैसा ही करूँगा।"
इसके बाद मैं चुपचाप अपने कमरे में चला गया और एक छोटा-सा दोनाली तमंचा भरकर अपनी कमर में छिपा लेने के बाद बाहर निकला। मुझे देखते ही रघुबरसिंह ने पूछा, "कहिए, क्या हाल है?" मैंने जवाब दिया, "अब तो होश में आ गई हैं, वैद्यजी को बुला लाने के लिए कह दिया है, तब तक हम लोग भी घूम आयेंगे।"
इतना कहकर मैं उस घोड़े पर सवार हो गया, रघुवरसिंह भी अपने घोड़े पर सवार हुआ और मेरे साथ चला। शहर के बाहर निकलने के बाद मैंने पूरब की तरफ घोड़े को घुमाया, उसी समय रघुबरसिंह ने टोका और कहा, "उधर नहीं पश्चिम की तरफ चलिए, इधर का मैदान बहुत अच्छा और सुहावना है।"
मैं––इधर पूरब की तरफ भी तो कुछ बुरा नहीं है, मैं इधर ही चलूँगा।
रघुबरसिंह––नहीं-नहीं, आप पश्चिम ही की तरफ चलिए, उधर एक काम और निकलेगा। दारोगा साहब भी इस घोड़े की चाल देखना चाहते थे, मैंने कह दिया था कि आप लोग अपने घोड़े पर सवार होकर जाइये और फलाँ जगह ठहरियेगा, हम लोग घूमते हुए उसी तरफ आयेंगे, वे जरूर वहाँ गये होंगे और हम लोगों का इन्तजार कर रहे होंगे।
मैं––ऐसा ही शौक था तो दारोगा साहब भी हमारे यहाँ आ जाते और हम लोगों के साथ चलते!
रघुबरसिंह––खैर, अब तो जो हो गया सो हो गया, अब उनका खयाल जरूर करना चाहिए।
मैं––मुझे भी पूरब की तरफ जाना बहुत जरूरी है, क्योंकि एक आदमी से मिलने का वादा कर चुका हूँ।
इसी तौर पर मेरे और उसके बीच बहुत देर तक हुज्जत होती रही। मैं पूरब की तरफ जाना चाहता था और वह पश्चिम की तरफ जाने के लिए जोर देता रहा, नतीजा यह निकला कि न पूरब ही गये, न पश्चिम ही गये, बल्कि लौटकर सीधे घर चले आये और यह बात रघुबरसिंह को बहुत ही बुरी मालूम हुई, उसने मुझसे मुँह फुला लिया और कुढ़ता हुआ अपने घर चला गया।
मेरा रहा-सहा शक भी जाता रहा और हरदीन की बातों पर मुझे पूरा-पूरा विश्वास हो गया, मगर मेरे दिल में इस बात की उलझन हद से ज्यादा पैदा हुई कि हरदीन को इन सब बातों की खबर क्योंकर लग जाती है। आखिर रात के समय जब एकान्त हुआ तब मुझसे और हरदीन से इस तरह की बातें होने लगी––
मैं––हरदीन, तुम्हारी बात ठीक निकली, उसने पश्चिम तरफ ले जाने के लिए