नजीर भी कभी सुनने में न आयेगी।
गोपालसिंह--बखेड़ों का सबब भी उसी तिलिस्म को समझना चाहिए, उसी का आनन्द लूटने के लिए लोगों ने ऐसे बखेड़े मचाए और उसी की बदौलत लोगों की ताकत और हैसियत भी बढ़ी।
जीतसिंह-—बेशक, यही बात है । जैसे-जैसे तिलिस्म के भेद खुलते गये तैसे-तैसे पाप और लोगों की बदकिस्मती का जमाना भी तरक्की करता गया।
सुरेन्द्रसिंह--हमें तो कम्बख्त दारोगा के कामों पर आश्चर्य होता है, न मालूम किस सुख के लिए उस कम्बख्त ने ऐसे-ऐसे कुकर्म किए !
भरतसिंह--(हाथ जोड़कर) मैं तो समझता हूँ कि दारोगा के कुकर्मों का हाल महाराज ने अभी बिल्कुल नहीं सुना। उसकी कुछ पूर्ति तब होगी, जब हम लोग अपना किस्सा बयान कर चुकेंगे।
सुरेन्द्रसिंह-–ठीक है, हमने भी आज आप ही का किस्सा सुनने की नीयत से आराम नहीं किया।
भरतसिंह--मैं अपनी दुर्दशा बयान करने के लिए तैयार हूँ।
जीतसिंह--अच्छा,तो अब आप शुरू करें।
भरतसिंह--जो आज्ञा।
इतना कहकर भरतसिंह ने इस तरह अपना हाल बयान करना शुरू किया।
भरतसिंह-मैं जमानिया का रहने वाला और एक जमींदार का लड़का हूँ। मुझे इस बात का सौभाग्य प्राप्त था कि राजा गोपालसिंह मुझे अपना मित्र समझते थे, यहाँ तक कि भरी मजलिस में भी मित्र कहकर मुझे सम्बोधन करते थे, और घर में भी किसी तरह का पर्दा नहीं रखते थे। यही सबब था कि वहाँ के कर्मचारी लोग तथा अच्छे-अच्छे रईस मुझसे डरते और मेरी इज्जत करते थे परन्तु दारोगा को यह बात पसन्द न थी।
केवल राजा गोपालसिंह ही नहीं इनके पिता भी मुझे अपने लड़के की तरह ही मानते और प्यार करते थे, विशेष करके इसलिए कि हम दोनों मित्रों की चाल-चलन में किसी तरह की बुराई दिखाई नहीं देती थी।
जमानिया में जो बेईमान और दुष्ट लोगों की एक गुप्त कमेटी थी उसका हाल आप लोग जान ही चुके हैं अतएव उसके विषय में विस्तार के साथ कुछ कहना वृथा ही है, हाँ, जरूरत पड़ने पर उसके विषय में इशारा मात्र कर देने से काम चल जायेगा।
रियासतों में मामूली तौर पर तरह-तरह की घटनाएं हुआ ही करती हैं, इसलिए राजा गोपालसिंह को गद्दी मिलने के पहले जो कुछ मुझ पर बीत चुकी है, उसे मामूली समझकर मैं छोड़ देता हूँ और उस समय से अपना हाल बयान करता हूँ जब इनकी शादी हो चुकी थी। इस शादी में जो कुछ चालबाजी हुई थी उसका हाल आप सुन ही चुके हैं ।
जमानिया की वह गुप्त कमेटी यद्यपि भूतनाथ की बदौलत टूट चुकी थी, मगर उसकी जड़ नहीं कटी थी, क्योंकि कम्बख्त दारोगा हर तरह से साफ बच रहा था और कमेटी का कमजोर दफ्तर अभी भी उसके कब्जे में था।
गोपालसिंह की शादी हो जाने के बहुत दिन बाद एक दिन मेरे एक नौकर ने रात