पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१४७

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तिलिस्मी मकान से थोड़ी दूर पर है और साथ ही इसके मीठी बातें भी करती जाती हैं।

कमलिनी--(किशोरी से) बहिन एक दिन वह था कि हमें अपनी इच्छा के विरुद्ध ऐसे बल्कि इससे भी बढ़कर भयानक जंगलों में घूमना पड़ता था और उस समय यह सोचकर डर मालूम पड़ता था कि कोई शेर इधर-उधर से निकलकर हम पर हमला न करे, और एक आज का दिन है कि इस जंगल की शोभा भली मालूम पड़ती है और इसमें घूमने को जी चाहता है।

किशोरी--ठीक है, जो काम लाचारी के साथ करना पड़ता है वह चाहे अच्छा ही क्यों न हो परन्तु चित्त को बुरा लगता है, फिर भयानक तथा कठिन कामों का तो कहना ही क्या ! मुझे तो जंगल में शेर और भेड़ियों का इतना खयाल न होता था जितना दुश्मनों का, मगर वह समय और ही था ईश्वर न करे किसी दुश्मन को दिखे । उस समय हम लोगों की किस्मत बिगड़ी हुई थी और अपने साथी लोग भी दुश्मन बनकर सताने के लिए तैयार हो जाते थे। (कमला की तरफ देखकर) भला तुम्ही बताओ कि उस चमेला छोकरी का मैंने क्या बिगाड़ा था जिसने मुझे हर तरह से तबाह कर दिया ? अगर वह मेरी मुहब्बत का हाल मेरे पिता से न कह देती तो मुझ पर वैसी भयानक मुसीबत क्यों आ जाती?

कमला--बेशक ऐसा ही है, मगर उसने जैसी नमकहरामी की, वैसी ही सजा पाई । मेरे हाथ के कोड़े वह जन्म भर न भूलेगी!

किशोरी--मगर इतना होने पर भी उसने मेरे पिता के जी का ठीक-ठीक भेद न बताया।

कमला--बेशक वह बहुत ही जिद्दी निकली, मगर तुमने भी यह बड़ी लायकी दिखाई कि अन्त में उसे छोड़ देने का हुक्म दे दिया। अब भी वह जहाँ जायगी, दुःख ही भोगेगी।

किशोरी--इसके अतिरिक्त उस जमाने में धनपत के भाई ने क्या मुझे कम तकलीफ दी थी जब मैं नागर के यहां कैद थी ! उस कम्बख्त की तो सूरत देखने से मेरा खून खुश्क हो जाता था!

लाड़िली-वही जिसे भूतनाथ ने जहन्नुम में पहुंचा दिया ? मगर नागर इस मामले को बिल्कुल ही छिपा गई, मायारानी से उसने कुछ भी न कहा और इसी में उसका भला भी था।

किशोरी--(लाड़िली से) बहिन, तुम तो बड़ी नेक हो और तुम्हारा ध्यान भी धर्म-विषयक कामों में विशेष रहता है, मगर उन दिनों तुम्हें क्या हो गया था कि माया- रानी के साथ बुरे कामों में अपना दिन बिताती थीं और हम लोगों की जान लेने के लिए तैयार रहती थीं?

लाड़िली--(लज्जा और उदासी के साथ) फिर तुमने वही चर्चा छेड़ी ! मैं कई दफे हाथ जोड़कर तुमसे कह चुकी हूँ कि अब उन बातों की याद दिलाकर मुझे शर्मिन्दा


1.देखिए चन्द्रकान्ता सन्तंति, पहला भाग, ग्यारहवें बयान का अन्त। 2. " " आठवा भाग, नौवां बयान।