पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१४६

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थीं। जब कोई हमजोली या आपस वाली क्रोध भरी हुई अपना मुंह बिगाड़े इनके सामने आती तो यदि मौका होता तो ये हँसकर कह देतीं कि 'वाह, ईश्वर ने अच्छी सूरत बनाई है !' या 'बहिन, हमने तो तुम्हारा जो कुछ बिगाड़ा सो बिगाड़ा मगर तुम्हारी सुरत ने तुम्हारा क्या कसूर किया है जो तुन उसे बिगाड़ रही हो ?' बस, इतने ही में उसका रंग बदल जाता । इन बातों को विचार कर हम इनके दिल का आईने के साथ मिलान करना पसन्द नहीं करते वल्कि यह कहना मुनासिब समझते हैं कि 'इनका दिल समुद्र की तरह गम्भीर था।'

इन चारों को इस का खयाल ही न था कि हम अमीर हैं, हाथ-पैर हिलाना या घर का कामकाज करना हमारे लिए पाप है । ये खुशी से घर का काम जो इनके लायक होता करतीं औरी खाने-पीने क चीजों पर विशेष ध्यान रखतीं। सबसे बड़ा खयाल इन्हें इस बात का रहता था कि इनके पति इनसे किसी तरह रंज न होने पावें और घर के किसी बड़े बुजुर्ग को इन्हें बेअदब कहने का मौका न मिले । महारानी चन्द्र- कान्ता की तो बात ही दूसरी है, ये चपला और चम्पा को भी सास की तरह समझती और इज्जत करती थीं । घर की लौंडियां तक इनसे प्रसन्न रहतीं और जब किसी लौंडी से कोई कसूर हो जाता तो झिड़की और गालियों के बदले नसीहत के साथ समझाकर ये उसे कायल और शर्मिन्दा कर देती और उसके मुंह से कहला देतीं कि 'बेशक मुझसे भूल हुई, आइन्दा कभी ऐसा न होगा !' सबसे विचित्र बात तो यह थी कि इनके चेहरे पर रंज क्रोध या उदासी कभी दिखाई देती ही न थी और जब कभी ऐसा होता तो किसी भारी घटना का अनुमान किया जाता था। हां, उस समय इनके दुःख और चिन्ता कोई ठिकाना नहीं रहता था जब ये अपने पति को किसी कारण दुःखी देखतीं । ऐसी अवस्था में इनकी सच्ची भक्ति के कारण इनके पति को अपनी उदासी छिपानी पड़ती या इन्हें प्रसन्न करने और हंसाने के लिए और किसी तरह का उद्योग करना पड़ता । मतलब यह है कि इन्होंने घ भर का दिल अपने हाथ में कर रखा था और ये घर भर की प्रसन्नता का कारण समझी जाती थीं।

भूतनाथ की स्त्री शान्ता का इन्हें बहुत बड़ा खयाल रहता और ये उसकी पिछली घटनाओं को याद करके उसकी पति-भक्ति की सराहना किया करतीं।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि इन्हें अपनी जिन्दगी में दुःखों के बड़े-बड़े समुद्र पार करने पड़े थे परन्तु ईश्वर की कृपा से जब ये किनारे लगी, तब इन्हें कल्पवृक्ष की छाया मिली और किसी बात की परवाह न रही।

इस समय संध्या होने में घण्टे भर की देर है । सूर्य भगवान् अस्ताचल की तरफ तेजी के साथ झुके चले जा रहे हैं और उनकी लाल-लाल पिछली किरणों से बड़ी-बड़ी अटारियां तथा ऊँचे-ऊँचे वृक्षों के ऊपरी हिस्सों पर ठहरा हुआ सुनहरा रंग बड़ा ही सुहा- वना मालूम पड़ता है । ऐसा जान पड़ता है मानो प्रकृति ने प्रसन्न होकर अपना गौरव बढ़ाने के लिए अपनी सहचरियों और सहायकों को सुनहरा ताज पहना दिया है।

ऐसे समय में किशोरी, कामिनी, लाड़िली और कमला अटारी पर एक सजे हुए बंगले के अन्दर बैठी जालीदार खिड़कियों से उस जंगल की शोभा देख रही हैं जो इस