रामदेई--खैर, जो होना था सो हो गया, अब इस समय अफसोस करने से काम नहीं चलेगा। सब जेवर छिन जाने पर भी मेरे पास थोड़ा-सा सोना बचा हुआ है, अगर इससे कुछ काम चले तो
नानक--(चौंक कर) क्या कुछ है?
रामदेई–-हाँ !
इतना कहकर रामदेई ने धोती के अन्दर से छिपी हुई सोने की एक करधनी निकाली और नानक के आगे रख दी।
नानक--(करधनी को हाथ में लेकर) बहुत है, हम लोगों घर तक पहुँचा देने के लिए काफी है, और वहाँ पहुंचने पर किसी तरह की तकलीफ न रहेगी, क्योंकि वहाँ मेरे पास खाने-पीने की कमी नहीं है।
रामदेई--तो क्या वहाँ चलकर इन बातों को भूल
नानक--(बात काट कर) नहीं-नहीं, यह न समझना कि वहाँ पहुँच कर हम इन बातों को भूल जायेंगे और बेकार बैटे टुकड़े तोड़ेंगे, बल्कि वहाँ पहुँच कर इस बात का बन्दोबस्त करेंगे कि अपने दुश्मनों से बदला लिया जाय।
रामदेई–-हां, मेरा भी यही इरादा है, क्योंकि मुझे तुम्हारे बाप की बेमुरौवती का बड़ा रंज है जिसने हम लोगों को दूध की मक्खी की तरह एकदम निकाल कर फेंक दिया और पिछली मुहब्बत का कुछ खयाल न किया । शान्ता और हरनामसिंह को पाकर ऐंठ गया और इस बात का कुछ भी खयाल न किया कि आखिर नानक भी तो उसका ही लड़का है और वह ऐयारी भी जानता है।
नानक–-(जोश के साथ) बेशक यह उसकी बेईमानी और हरामजदगी है ! अगर वह चाहता तो हम लोगों को बचा सकता था।
रामदेई--बचा लेना वया, यह जो कुछ किया सब उसी ने तो किया। महाराज ने तो हुक्म दे ही दिया था कि 'भूतनाथ की इच्छानुसार इन दोनों के साथ बर्ताव किया जाय।
नानक--बेशक ऐसा ही है ! उसी कम्बख्त ने हम लोगों के साथ ऐसा सलूक किया । मगर क्या चिन्ता है, इसका बदला लिये बिना मैं कभी न छोड़े गा।
रामदेई--(आँसू बहाकर) मगर तेरी बातों पर मुझे विश्वास नहीं होता क्योंकि तेरा जोश थोड़ी ही देर का होता है।
नानक-(क्रोध के साथ रामदेई के पैरों पर हाथ रख के) मैं तुम्हारे चरणों की कसम खाकर कहता हूँ कि इसका बदला लिए बिना कभी न रहूँगा।
रामदेई--भला मैं भी तो सुनूं कि तू क्या बदला लेगा? मेरे खयाल से तो वह जान से मार देने लायक है।
नानक--ऐसा ही होगा, ऐसा ही होगा ! जो तुम कहती हो वही करूँगा बल्कि उसके लड़के हरनामसिंह को भी यमलोक पहुँचाऊँगा!
रामदेह--शाबाश ! मगर मेरा चित्त तब तक प्रसन्न नहीं होगा जब तक शान्ता का सिर अपने तलवों से न रगड़ने पाऊँगी!