और हम लोगों को करना ही क्या है !
इतना कहकर कुंअर इन्द्रजीतसिंह गद्दी पर बैठ गये और हाथ पकड़कर किशोरी और कमलिनी को अपने दोनों बगल बैठा लिया। कमला आज्ञा पाकर बैठा ही चाहती थी कि दरवाजे पर ताली बजने की आवाज आई जिसे सुनते ही वह बाहर चली गई और तुरन्त लौटकर बोली, "पहरे वाली लौंडी कहती है कि भैरोसिंह खड़े हैं।"
कुमार--(खुश होकर) हां-हो, उन्हें जल्द ले आओ, इन हजरत ने मेरे साथ क्या कम दिल्लगी की है ? अब तो मैं सब बातें समझ गया। भला आज उन्हें इत्तिला कराके मेरे पास आने का दिन तो नसीब हुआ।
कुमार की बातें सुनकर कमला पुनः बाहर चली गई और कमलिनी तथा किशोरी, कुमार के बगल से कुछ हटकर बैठ गईं, इतने ही में भैरोंसिंह भी आ पहुँचे।
कुमार--आइए-आइए ! आपने भी मुझे बहुत छकाया है। पर क्या चिन्ता है, समय मिलने पर समझ लूंगा।
भैरोंसिंह--(हँसकर)जो कुछ किया (किशोरी की तरफ बताकर) इन्होंने किया, मेरा कोई कसूर नहीं!
कुमार--खैर, जो कुछ हुआ सो हुआ, अब मुझे सच्चा-सच्चा हाल तो सुना दो कि तिलिस्म के अन्दर इस तरह की रूखी-फीकी शादी क्यों कराई गई और इस काम के अगुआ कौन महापुरुष थे?
भैरोंसिंह--(किशोरी की तरफ इशारा करके)जो कुछ किया सब इन्होंने किया, यही सब काम थे। अगुआ थीं और राजा गोपालसिंह इस काम में इनकी मदद कर रहे थे। उन्ही के आज्ञानुसार मुझे भी मजबूर होकर इन लोगों का साथ देना पड़ा था। इसका खुलासा हाल आप कमला से पूछिये, यही ठीक-ठीक बतावेगी।
कुमार--(कमला से) खैर, तुम्हीं बताओ कि क्या हुआ?
कमला--(किशोरी से) कहो बहिन, अब तो मैं साफ-ही-साफ कह दूं?
किशोरी--अब छिपाने की जरूरत ही क्या है?
कमला ने इस तरह से कहना शुरू किया, "किशोरी बहिन ने मुझसे कई दफे कहा कि 'तू इस बात का बन्दोबस्त कर कि किसी तरह मेरी शादी के पहले ही कमलिनी की शादी कुमार के साथ हो जाय ।' मगर मेरे किये इसका कुछ भी बन्दोबस्त न हो सका और कमलिनी रानी भी इस बात पर राजी होती दिखाई न दीं, अतः मैं बात टाल कर चुपकी हो बैठी, मगर मुझे इस काम में सुस्त देखकर किशोरी ने फिर मुझसे कहा कि 'देख कमला, तू मेरी बात पर कुछ ध्यान नहीं देती, मगर इसे खूब समझ रखना कि अगर मेरा इरादा पूरा न हुआ अर्थात् मेरी शादी के पहले ही कमलिनी की शादी कुमार के साथ न हो गई तो मैं कदापि ब्याह न करूँगी, बल्कि अपने गले में फांसी लगाकर जान दे दूंगी । कमलिनी ने जो कुछ अहसान मुझ पर किये हैं, उनका बदला मैं किसी तरह चुका नहीं सकती, अगर कुछ चुका सकती हूँ तो इसी तरह कि कमलिनी को पटरानी बनाऊँ और आप उसकी लौंडी होकर रहूँ, मगर अफसोस है कि तू मेरी बातों पर कुछ भी ध्यान नहीं देती जिसका नतीजा यह होगा कि एक दिन तू रोयेगी और पछताएगी।'