किशोरी--मेरे साथ यह क्या दिल्लगी की गई है?"
इन्द्रजीतसिंह--कुछ कहो भी तो क्या हुआ?
किशोरी--(हाथ दिखा कर) देखिए यह रंग कैसा है, जो चेहरे पर से पानी लगने के साथ ही छूट रहा है।
इन्द्रजीतसिंह--(हाथ देख कर) हाँ है तो सही ! मगर मैंने तो कुछ भी नहीं किया, तुम खुद सोच सोच सकती हो कि मैं भला तुम्हारे चेहरे पर रंग क्यों लगाने लगा, मगर तुम्हारे चेहरे पर यह रंग आया ही कहाँ से?
किशोरी--(पुनः चेहरे पर जल लगाकर) यह देखिए, है या नहीं!
इन्द्रजीतसिंह–-सो तो मैं खुद कह रहा हूँ कि रंग जरूर है, मगर जरा मेरी तरफ देखो तो सही!
किशोरी ने जो अब समयानुकूल लज्जा के हाथों से छूट कर ढिठाई का पल्ला पकड़ चुकी थी और जो कई घण्टों की कशमकश और चाल-चलन की बदौलत बातचीत करने लायक समझी जाती थी, कुमार की तरफ देखा और फिर कहा, "देखिए और कहिए, यह किसकी सूरत है?"
इन्द्रजीतसिंह--(और भी हैरान होकर) बड़े ताज्जुब की बात है! और इस रंग छूटने से तुम्हारा चेहरा भी कुछ बदला हुआ सा मालूम पड़ता है ! अच्छा, जरा अच्छी तरह से मुंह धो डालो! किशोरी ने 'अच्छा' कह मुंह धो डाला और रूमाल से पोंछने के बाद कुमार की तरफ देख कर बोली, "बताइए, अब कैसा मालूम पड़ता है ? रंग अब छूट गया या अभी नहीं?"
इन्द्रजीतसिंह--(घबराकर) हैं ! अब तो तुम साफ कमलिनी मालूम पड़ती हो ! यह क्या मामला है?
किशोरी–-मैं कमलिनी तो नहीं हुई हूँ। क्या पहले कोई दूसरी मालूम पड़ती थी?
इन्द्रजीतसिंह--बेशक ! पहले तुम किशोरी मालूम पड़ती थीं, कम रोशनी और कुछ लज्जा के कारण यद्यपि बहुत अच्छी तरह तुम्हारी सूरत रात को देखने में नहीं आई, तथापि मौके-मौके पर कई दफे निगाह पड़ ही गई थी। अतः किशोरी के सिवाय दूसरी औरत होने का गुमान भी नहीं हो सकता था ! मगर सच तो यह है कि तुमने मुझे बड़ा धोखा दिया!
कमलिनी--(जिसे अब इसी नाम से लिखना उचित है) मैंने धोखा नहीं दिया, बल्कि आप मुझे इस बात का जवाब तो दीजिए कि अगर आपने मुझे किशोरी समझा था तो इतनी ढिठाई करने की हिम्मत कैसे पड़ी? क्योंकि किशोरी आपकी स्त्री नहीं थी! इन्द्रजीतसिंह--क्या पागलपने की-सी बातें कर रही हो ! अगर किशोरी मेरी स्त्री नही थी तो क्या तुम मेरी स्त्री थीं?
कमलिनी--अगर आपने मुझे किशोरी समझा था तो आपको मेरे पास से उठ जाना चाहिए था। जब कि आप जानते हैं कि किशोरी कुमार के साथ ब्याही गई है तो