भैरोंसिंह--बेशक ऐसा ही हुआ।
इतना कहकर भैरोंसिंह ने कुल हाल खुलासा बयान किया और इसके बाद कमलिनी ने इन्द्र जीतसिंह से कहा, "खैर. आप बताइए कि शादी की खुशी में मुझे क्या इनाम मिलेगा?"
इन्द्रजीतसिंह--(हँसकर) गालियों के सिवाय और किसी चीज की तुम्हें कमी ही क्या है जो मैं दूं?
कमलिनी–-(भैरोंसिंह से)सुन लीजिये, मेरे लिए कैसा अच्छा इनाम सोचा गया है ! (कुमार से हँसकर) याद रखियेगा, इस जवाब के बदले मैं आपको ऐसा छकाऊँगी कि खुश हो जाइयेगा!
भैरोंसिंह–-इन्हें तो तुम छका चुकी हो, अब इससे बढ़कर क्या होगा कि चुप- चाप दूसरे के साथ शादी कर ली, और इन्हें अंगठा दिखा दिया । अब तुम्हें ये गालियां न दें तो क्या करें!
कमलिनी--(मुस्कराती हुई) आपकी रा। भी यही है?
भैरोंसिंह--बेशक!
कमलिनी–-तो बेचारी किशोरी के साथ आप यह अच्छा सलूक करते हैं!
भैरोंसिंह--इसका इल्जाम तो कुमार के ऊपर हो सकता है!
कमलिनी–-हाँ, साहब, आज के मर्दो की मुरोवत जो कुछ न कर दिखाए थोड़ा है मैं किशोरी बहिन से इसका जिक्र करूंगी।
भैरोंसिंह--तब तो अहसान पर अहसान करोगी।
इन्द्रजीतसिंह–-(भैरोंसिंह से) तुम भी व्यर्थ की छेड़छाड़ मचा रहे हो, भला इन बातों से क्या फायदा?
भैरोंसिंह--व्याद-शादी में ऐसी बातें हुआ ही करती हैं!
इन्द्रजीतसिंह--तुम्हारा सिर हुआ करता है ! (कमलिनी से)अच्छा, यह बताओ कि इस समय तुमने मुझे क्यों याद किया?
कमलिनी–-हरे राम ! अब क्या मैं ऐसी भारी हो गई कि मुझसे मिलना भी बुरा मालूम होता है?
इन्द्रजीतसिंह--नहीं-नहीं, अगर मिलना बुरा मालूम होता तो मैं यहाँ आता ही क्यों ? पूछता हूँ कि आखिर कोई काम भी है या?
कमलिनी–-हाँ, है तो सही।
इन्द्रजीतसिंह--कहो!
कमलिनी--आपको शायद मालूम होगा कि मेरे पिता जब से यहाँ आये हैं, उन्होंने अपने खाने-पीने का इन्तजाम अलग रखा है, अर्थात् आपके यहाँ का अन्न नहीं खाते और न कुछ अपने लिए खर्च कराते हैं।
इन्द्रजीतसिंह-हाँ, मुझे मालूम है।
कमलिनी--अब उन्होंने इस मकान में रहने से भी इनकार किया है। उनके एक मित्र ने खेमे वगैरह का इन्तजाम कर दिया है, और वे उसी में अपना डेरा उठाकर