पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/११३

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इन्द्रजीतसिंह–-इस बात को तो मैं खुद ही कह रहा हूँ, कि उसके अहसानों के वोझ से मैं जिन्दगी-भर हलका नहीं हो सकता और अब तक उसके जी में मेरी भलाई का ध्यान बंधा ही हुआ है, मगर रंज इस बात का है कि अब मैं उसे उस मुहब्बत की निगाह से नहीं देख सकता जिससे पहले देखता था।

भैरोंसिंह--सो क्यों ? क्या इसलिए कि अब वह अपनी ससुराल चली जायेगी, और फिर उसे आप पर अहसान करने का मौका न मिलेगा?

इन्द्रजीतसिंह--हाँ, करीब-करीब यही बात है।

भैरोंसिंह--मगर अब आपको उसकी मदद की जरूरत भी तो नहीं है। हां, इस बात का खयाल बेशक हो सकता है कि अब आप उसके तिलिस्मी मकान पर कब्जा न कर सकेंगे।

इन्द्रजीतसिंह--नहीं-नहीं, मुझे इस बात की कुछ जरूरत नहीं है, और न इसका कुछ खयाल ही है!

भैरोंसिंह--तो इस बात का खयाल है कि उसने अपनी शादी में आपको न्यौता नहीं दिया ? मगर वह एक हिन्दू लड़की की हैसियत से ऐसा कर भी तो नहीं सकती थी ! हाँ, इस बात की शिकायत आप राजा गोपालसिंहजी से जरूर कर सकते हैं, क्योंकि उस काम के कर्ता-धर्ता वे ही हैं।

इन्द्रजीतसिंह--उनसे तो मुझे बहुत ही शिकायत है, मगर मैं शर्म के मारे कुछ कह नहीं सकता।

भैरोंसिंह--(चौंककर) शर्म तो तब होती, जब आप इस बात की शिकायत करते कि मैं खुद उससे शादी करना चाहता था।

इन्द्रजीतसिंह--हाँ, बात तो ऐसी ही है । (मुस्कराकर) मगर तुम तो पागलों की-सी बातें करते हो।

भैरोंसिंह--(हँसकर) यह कहिए न कि आप दोनों हाथ लड्डू चाहते थे ! तो इस चोर को आप इतने दिनों तक छिपाए क्यों रहे?

इन्द्रजीतसिंह--तो यही कब उम्मीद हो सकती थी कि इस तरह यकायक गुमसुम उसकी शादी हो जायेगी।

भैरोंसिंह--खैर, अब तो जो कुछ होना था सो हो गया, मगर आपको इस बात का खयाल न करना चाहिए। इसके अतिरिक्त क्या आप समझते हैं, कि किशोरी इस बात को पसन्द करती ? कभी नहीं, बल्कि आये दिन का झगड़ा पैदा हो जाता।

इन्द्रजीतसिंह--नहीं, किशोरी से मुझे ऐसी उम्मीद नहीं हो सकती । खैर, अब इस विषय पर बहस करना व्यर्थ है, मगर मुझे इसका रंज जरूर है। अच्छा, यह तो बताओ, तुमने उन्हें देखा है जिनके साथ कमलिनी की शादी हुई?

भैरोंसिंह--कई दफे, बातें भी अच्छी तरह कर चुका हूँ।

इन्द्रजीतसिंह--कैरो हैं?

भैरोसिंह--बड़े लायक, पढ़े-लिखे, पण्डित, बहादुर, दिलेर, हँसमुख और सुन्दर।