(10) कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के साथ रहकर उनके विवाह- सम्बन्धी शान-शौकत और जरूरतों को कायदे के साथ निभाने के लिए भैरोंसिंह और तारासिंह छोड़ दिये गये।
(11) हरनामसिंह को अपनी मातहती में लेकर जीतसिंह ने यह काम अपने जिम्मे ले लिया कि हर एक के कामों की जाँच और निगरानी रखने के अतिरिक्त कुछ कैदियों को भी किसी उचित ढंग से इस विवाहोत्सव के तमाशे दिखा देंगे, ताकि वे लोग भी देख लें, कि जिस शुभ दिन के हम बाधक थे, वह आज किस खुशी और खूबी के साथ बीत रहा है और सर्वसाधारण भी देख लें, कि धन-दौलत और ऐश-आराम के फेर में पड़कर अपने पैर में आप कुल्हाड़ी मारने वाले, छोटे होकर बड़ों के साथ पैर बांध के नतीजा भोगने वाले, मालिक के साथ में नमकहरामी और उग्र पाप करने का कुछ फल इस जन्म में भी भोग लेने वाले, और बदनीयती तथा पाप के साथ ऊंचे दर्जे पर पहुंचकर यकायक रसातल में पहुँच जानेवाले, धर्म और ईश्वर से सदा विमुख रहने वाले ये ही प्रायश्चित्ती लोग हैं।
इन सबके साथ मातहती में काम करने के लिए आदमी भी काफी तौर पर दिए गये।
इनके अतिरिक्त और लोगों को भी तरह-तरह के काम सुपुर्द किए गए और सब कोई बड़ी खूबी के साथ अपना-अपना काम करने लगे।
अब हम थोड़ा-सा हाल कुँअर इन्द्रजीतसिंह का बयान करेंगे, जिन्हें इस बात का बहुत ही रंज है कि कमलिनी की शादी किसी दूसरे के साथ हो गई, और वे उम्मीद ही में बैठे रह गये।
रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है और कुँअर इन्द्रजीतसिंह अपने कमरे में बैठे भैरोंसिंह से धीरे-धीरे बातें कर रहे हैं । इन दोनों के सिवाय कोई तीसरा आदमी इस कमरे में नहीं है और कमरे का दरवाजा भी भिड़वाया हुआ है।
भैरोंसिंह--तो आप साफ-साफ कहते क्यों नहीं कि आपकी उदासी का सबब क्या है ? आपको तो आज खुश होना चाहिए, कि जिस काम के लिए आप बरसों परेशान रहे, जिसकी उम्मीद में तरह-तरह की तकलीफ उठाई, जिसके लिए हथेली पर जान रखकर बड़े-बड़े दुश्मनों से मुकाबला करना पड़ा और जिसके होने या मिलने पर ही तमाम दुनिया की खुशी समझी जाती थी, आज वही काम आपकी इच्छानुसार हो रहा है, और उसी किशोरी के साथ आपकी शादी का इन्तजाम हम अपनी आँखों से देख रहे हैं, फिर भी ऐसी अवस्था में आपको उदास देखकर कौन ऐसा है जो ताज्जुब न करेगा?
इन्द्रजीतसिंह--बेशक, मेरे लिए आज यह बड़ी खुशी का दिन है, और मैं खुश हूँ भी, मगर कमलिनी की तरफ से जो रंज मझे हुआ है, उसे हजार कोशिश करने पर भी मेरा दिल बर्दाश्त नहीं कर पाता।
भैरोंसिंह--(ताज्जुब का चेहरा बनाकर)हैं, कमलिनी की तरफ से और आपको रंज ! जिसके अहसानों के बोझ से आप दबे हुए हैं, उसी कमलिनी से रंज ! यह आप क्या कह रहे हैं?