में जाकर डेरा डाला, और छिपे-छिपे कमला और कामिनी की मदद करने लगा तो उन्हीं दिनों उस तिलिस्मी तहखाने में जाकर भूतनाथ ने शेरसिंह से एक तौर पर (बहुत दिनों तक गायब रहने के बाद) नई मुलाकात की, मगर धर्मात्मा शेरसिंह को यह बात बहुत बुरी मालूम हुई।
गोपालसिंह इतना कह ही रहे थे कि भूतनाथ और इन्द्रदेव कमरे के अन्दर आ पहुँचे और सलाम करके आज्ञानुसार जीतसिंह के पास बैठ गये।
जीतसिंह-(भूतनाथ और इन्द्रदेव से) आप लोग बहुत जल्द आ गये।
इन्द्रदेव-हम दोनों इसी जगह बरामदे के नीचे बाग में टहल रहे थे, इसलिए चोबदार नीचे उतरने के साथ ही हम लोगों से जा मिला।
जीतसिंह-खैर, (गोपालसिंह से) हाँ तब ?
गोपालसिंह-अपनी नेकनामी में धब्बा लगने और बदनाम होने के डर से भूतनाथ की सूरत देखना भी शेरसिंह पसन्द नहीं करता था, बल्कि उसका तो यही बयान है कि 'मुझे भूतनाथ से मिलने की आशा ही न थी और मैं समझे हुए था कि अपने दोषों से लज्जित होकर भूतनाथ ने जान दे दी।' मगर जिस दिन उसने उस तहखाने में भूतनाथ की सूरत देखी तो काँप उठा। उसने भूतनाथ की बहुत लानत-मलामत करने के बाद कहा कि "अब तुम हम लोगों को अपना मुंह मत दिखाओ और हमारी जान और आबरू पर दया करके किसी दूसरे देश में चले जाओ।" मगर मूतनाथ ने इस बात को मंजूर न किया और यह कहकर अपने भाई से बिदा हुआ कि चुपचाप बैठे देखते रहो कि मैं किस तरह अपने पुराने परिचितों में प्रकट होकर खास राजा वीरेन्द्रसिंह का ऐयार बनता हूं। बस इसके बाद भूतनाथ कमलिनी से जा मिला और जी-जान से उसकी मदद करने लगा। मगर शेरसिंह को यह बात पसन्द न आई। यद्यपि कुछ दिनों तक शेरसिंह ने कमलिनी तथा हम लोगों का साथ दिया, मगर डरते-डरते । आखिर एक दिन शेरसिंह ने एकान्त में मुझसे मुलाकात की और अपने दिल का हाल तथा मेरे विषय में जो कुछ जानता था, कहने के बाद बोला, “यह सब हाल कुछ तो मुझे अपने भाई भूतनाथ की जुबानी मालूम हुआ और कुछ रोहतासगढ़ को इस्तीफा देने के बाद तहकीकात करने से मालूम हुआ, मगर इस बात की खबर हम दोनों भाइयों में से किसी को भी न थी कि आपको मायारानी ने कैद कर रक्खा है । खैर, अब ईश्वर की कृपा से आप छूट गये हैं इसलिए आपके सम्बन्ध जो कुछ मुझे मालूम है आपसे कह दिया, जिसमें आप दुश्मनों से अच्छी तरह बदला ले सकें। अब मैं आगे अपना मुंह किसी को दिखाना नहीं चाहता क्योंकि मेरा भाई भूतनाथ जिसे मैं मरा हुआ समझता था प्रकट हो गया और न मालूम क्या-क्या किया चाहता है । कहीं ऐसा न हो कि गेहूँ के साथ घुन भी पिस जाय,अतः अब मैं जहाँ भागते बनेगा भाग जाऊँगा। हाँ, अगर भूतनाथ जो कि बड़ा जिद्दी और उत्साही है किसी तरह नेकनामी के साथ राजा वीरेन्द्र सिंह का ऐयार बन गया तो पुनः प्रकट हो जाऊँगा।" इतना कहकर शेरसिंह न मालूम कहाँ चला गया । मैंने बहुत
1. देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति, तीसरा भाग, तेरहवां बयान ।