गोपालसिंह--फिर भी मैं अपनी जबान (माफी) का खयाल करूँगा और तुम्हें किसी तरह की तकलीफ न दूंगा, मगर अब भूतनाथ की तरह मैं भी तुम्हारी गूरत देखना पसन्द नहीं करता और न भूतनाथ को इस विषय में कुछ कहना चाहता हूँ । इन्द्रदेव ने तुम्हारे साथ इतनी ही रियायत की सो बहुत किया कि तुमको यहाँ से निकल जाने की आज्ञा दे दी, नहीं तो तुम इस लायक थे कि जन्म-भर कैद में पड़े सड़ा करते।
नानक--जो आज्ञा, मगर मेरे पिता से इतना तो दिला दीजिए कि मेरी माँ जन्म भर खाने-पीने की तरफ से बेफिक्र रहे।
इन्द्रदेव--अबे कमीने, तुझे यह कहते शर्म नहीं मालूम होती ! इतना बड़ा हो के भी तू अपनी मां के लायक दाना-पानी नहीं जुटा सकता ? खैर, अब तुझे आखिरी मर्तबे कहा जाता है कि अब हम लोगों से किसी तरह की उम्मीद न रख और अपनी माँ को साथ लेकर यहाँ से जा। भूतनाथ ने भी मुझे यही कहने के लिए कहला भेजा है।
इतना कहकर इन्द्रदेव ने ताली बजाई और साथ ही अपने ऐयार सरयूसिंह को कमरे के अन्दर आते देखा।
इन्द्रदेव--(सरयू से) भूतनाथ कहाँ है?
सरयू--नम्बर पांच के कमरे में देवीसिंहजी से बातें कर रहे हैं । वे दोनों यहाँ आए भी थे मगर यह सुनकर कि नानक यहां बैठा हुआ है, पिछले पैर लौट गए।
इन्द्रदेव--अच्छा, तुम जाओ और उन्हें यहाँ बुला लाओ।
सरयूसिंह--जो आज्ञा ! परन्तु मुझे आशा नहीं है कि वे लोग नानक के रहते यहाँ आवेंगे।
इन्द्रदेव--अच्छा, तो मैं खुद जाता हूँ।
गोपालसिंह–--हाँ तुम्हारा ही जाना ठीक होगा, देवीसिंह को भी बुलाते आना ।
इन्द्रदेव उठकर चले गए और थोड़ी ही देर में भूतनाथ तथा देवीसिंह को साथ लिए हुए आ पहुंचे।
गोपालसिंह---(भूतनाथ से) क्यों साहब, आप यहाँ तक आकर लौट क्यों गए?
भूतनाथ---यों ही, मैंने समझा कि आप लोग किसी खास बात में लगे हुए हैं।
गोपालसिंह---अच्छा, बैठिए और एक बात का जवाब दीजिए।
भूतनाथ---कहिए!
गोपालसिंह---रामदेई और नानक के बारे में आप क्या हुक्म देते हैं?
भूतनाथ---महाराज ने क्या आज्ञा दी है?
गोपालसिंह---उन्होंने इसका फैसला आप ही के ऊपर छोड़ा है।
भूतनाथ---फिर जो राय आप लोगों की हो, मैंने तो इन दोनों के बारे में इसकी माँ को हुक्म सुना ही दिया है।
गोपालसिंह---इनके कसूर तो आप सुन ही चुके होंगे।
भूतनाथ---पिछले कसुरों को तो मैं सुन ही चुका हूँ, हाँ नया कसूर सिर्फ इतना ही मालूम हुआ है कि ये दोनों नन्हीं के यहां गिरफ्तार हुए हैं।
गोपालसिंह---इसके अतिरिक्त एक बात और है ।