किया कि वे सब कसूर माफ कर देने के लायक हो गए।
सुरेन्द्रसिंह-उस कलमदान में क्या चीज थी ?
गोपालसिंह-उस कलमदान को दारोगा की गुप्त सभा का दफ्तर ही समझिए ।सब सभासदों के नाम और सभा के मुख्य भेद उसी में बन्द रहते थे, इसके अतिरिक्त दामोदरसिंह ने जो वसीयतनामा इन्दिरा के नाम लिखा था वह भी उसी में बन्द था।
सुरेन्द्रसिंह-ठीक है, ठीक है, इन्दिरा के किस्से में यह बात भी तुमने लिखी थी, हमें याद आया। मगर इसमें भी कोई शक नहीं कि उन दिनों लालच में पड़कर भूतनाथ ने बहुत बुरा किया और उसी सबब से तुम लोगों को तकलीफ उठानी पड़ी।
एक नकाबपोश-शायद भूतनाथ को इस बात की खबर न थी कि इस लालच का नतीजा कहाँ तक बुरा निकलेगा।
सुरेन्द्रसिंह-जो हो मगर उस समय की बातों पर ध्यान देने से यह भी कहना पड़ता है कि उन दिनों भूतनाथ एक हाथ से भलाई के नाम कर रहा था और दूसरे हाथ से बुराई के।
गोपालसिंह-ठीक है, बेशक ऐसी ही बात थी।
सुरेन्द्रसिंह-(जीतसिंह की तरफ देख के) भूतनाथ और इन्द्रदेव को भी इसी समय यहाँ बुलाकर इस मामले को तय कर देना चाहिए।
"जो आज्ञा” कहकर जीतसिंह उठे और कमरे के बाहर जाकर चोबदार को हुक्म देने के बाद लौट आये, इसके बाद कुछ देर सन्नाटा रहा, फिर गोपालसिंह ने कहा-
गोपालसिंह-अपने खयाल में तो भूतनाथ ने कोई बुराई नहीं की थी क्योंकि बीस हजार अशर्फी दारोगा से वसूल करके उसे छोड़ देने पर भी उसने एक इकरार-नामा लिखा लिया था कि वह (दारोगा) ऐसे किसी काम में शरीक न होगा और न खुद ऐसा कोई काम करेगा जिसमें इन्द्रदेव, सरयू, इन्दिरा और मुझ (गोपालसिंह) को किसी तरह का नुकसान पहुँचे मगर दारोगा फिर भी बेईमानी कर ही गया और भूतनाथ इकरारनामे के भरोसे बैठा रह गया। इससे खयाल होता है कि शायद भूतनाथ को भी इन मामलों की ठीक खबर न हो अर्थात मुन्दर का हाल मालूम न हुआ हो, और वह लक्ष्मीदेवी के बारे में धोखा खा गया हो तो भी ताज्जुब नहीं।
सुरेन्द्रसिंह-हो सकता है, (कुछ देर तक चुप रहने के बाद) मगर यह तो बताओ कि इन सब मामलों की खबर तुम्हें कब और क्योंकर लगी?
गोपालसिंह-इन सब बातों का पता मुझे भूतनाथ के गुरुभाई शेरसिंह की जुबानी लगा जो भूतनाथ को भाई की तरह प्यार करता है मगर उसकी इन सब लालच भरी कार्रवाइयों के बुरे नतीजे को सोच और उसे पूरा कसूरवार समझकर उससे डरता और नफरत करता है। जिन दिनों रोहतासगढ़ का राजा दिग्विजयसिंह किशोरी को।अपने किले में ले गया था और इस सबब से शेरसिंह ने अपनी नौकरी छोड़ दी थी, उन दिनों भूतनाथ छिपा-छिपा फिरता था। मगर जब शेरसिंह ने उस तिलिस्मी तहखाने
1. इन्दिरा का किस्सा (चन्द्रकान्ता सन्तति, पन्द्रहवां भाग, पहला वयान)।