पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/९८

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नहीं, आपकी आज्ञानुसार मैं आठ पहर के अन्दर ही सब सामान दुरुस्त कर दूँगा। बस परसों ब्याह हो जाना ही ठीक है। बड़े लोग इस तिलिस्म में जो कुछ दहेज की रकम रख गये हैं वह इन्हीं दोनों कुमारियों के योग्य है। यद्यपि इन दोनों का दिल चुटीला हो चुका है परन्तु हमारा प्रताप भी तो कोई चीज है! जब तक दोनों कुमार आपकी आज्ञा न मानेंगे, तब तक वे जा कहाँ सकते हैं? अन्त को वह होना आवश्यक है जो आप चाहते हैं।

मुहरद॰––मु॰ मा॰"

इस चिट्ठी को कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने पुनः पढ़ा और ताज्जुब करते हुए अपने छोटे भाई की तरफ देख कर कहा, "ताज्जुब नहीं कि यह चिट्ठी किसी ने दिल्लगी के तौर पर लिख कर भैरोंसिंह के रास्ते में डाल दी हो और हम लोगों को तरदुद में डाल कर तमाशा देखना चाहते हो?"

आनन्दसिंह––कदाचित ऐसा ही हो। अगर कमलिनी से मुलाकात हो गई होती तो···

भैरोंसिंह––तब क्या होता? मैं यह पूछता हूँ कि इस तिलिस्म के अन्दर आकर आप दोनों भाइयों ने क्या किया? अगर इसी तरह से समय बिताया जायगा तो देखियेगा कि आगे चल कर क्या-क्या होता है!

इन्द्रजीतसिंह––तो तुम्हारी क्या राय है, बिना समझे-बूझे तोड़-फोड़ मचाऊँ?

भैरोंसिंह––बिना समझे-बूझे तोड़-फोड़ मचाने की क्या जरूरत है? तिलिस्मी किताब और तिलिस्मी बाजे से आपने क्या पाया और वह किस दिन काम आवेगा? क्या इन बागों का हाल उसमें लिखा हुआ न था?

इन्द्रजीतसिंह––लिखा हुआ तो था मगर साथ ही इसके यह भी अन्दाज मिलता था कि तिलिस्म के ये हिस्से टूटने वाले नहीं हैं।

भैरोंसिंह––यह तो मैं भी बिना तिलिस्मी किताब पढ़े हो समझ सकता हूँ कि तिलिस्म के ये हिस्से टूटने वाले नहीं हैं, अगर टूटने वाले होते तो किशोरी, कामिनी वगैरह को राजा गोपालसिंह हिफाजत के लिए यहाँ न पहुँचा देते, मगर यहाँ से निकल जाने का या तिलिस्म के उस हिस्से में पहुँचने का रास्ता तो जरूर होगा जिसे आप तोड़ सकते हैं।

आनन्दसिंह––हाँ, इसमें क्या शक है!

भैरोंसिंह––अगर शक नहीं है तो उसे खोजना चाहिए।

इतने ही में इन्द्रानी और आनन्दी भी आ पहुँचीं, जिन्हें देख दोनों कुमार बहुत प्रसन्न हुए और इन्द्रजीतसिंह ने इन्द्रानी से कहा––"मैं बहुत देर से तुम्हारे आने का इन्तजार कर रहा था।"

इन्द्रानी––मेरे आने में वादे से ज्यादा देर तो नहीं हुई।

इन्द्रजीतसिंह––न सही, मगर ऐसे आदमी के लिए जिसका दिल तरह-तरह के तरद्दुदों और उलझनों में पड़ कर खराब हो रहा हो, इतना इन्तजार भी कम नहीं है।