पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/९५

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क्योंकर इनकार हो सकता है? हाँ यदि ये न आते तो बटुआ कदापि न देता।

पीला मकरन्द––जब ये न आते मैं भी देख लेता कि तुम वह बटुआ मुझे कैसे नहीं देते। खैर अब इनका बटुआ इन्हें दे दो और पीछा छुड़ाओ!

स्याह नकाबपोश ने बटुआ खोलकर मेरे आगे रख दिया और कहा, "अब तो मुझे छुट्टी मिली?" इसके जवाब में मैंने कहा, "नहीं, पहले मुझे देख लेने दो कि मेरी अनमोल चीजें इसमें हैं या नहीं।"

मैंने उस बटुए के बन्धन पर निगाह पड़ते ही पहचान लिया कि मेरे हाथ की दी हुई गिरह ज्यों की त्यों मौजूद है तथापि होशियारी के तौर पर बटुआ खोल कर देख लिया और जब निश्चय हो गया कि मेरी सब चीजें इसमें मौजूद हैं तो खुश होकर बटुआ कमर में लगाकर स्याह नकाबपोश से बोला, "अब मेरी तरफ से तुम्हें छुट्टी है,मगर यह तो बता दो कि कुमार के पास किस राह से जा सकता हूँ?" इसका जवाब स्याह नकाबपोश ने यह दिया कि "यह सब हाल मैं नहीं जानता, तुम्हें जो कुछ पूछना है पीले मकरन्द से पूछ लो।"

इतना कहकर स्याह नकाबपोश न मालूम किधर चला गया और मैं पीले मकरन्द का मुँह देखने लगा। पीले मकरन्द ने मुझसे पूछा, "अब तुम क्या चाहते हो?"

मैं––अपने मालिक के पास जाना चाहता हूँ!

पीला मकरन्द––तो जाते क्यों नहीं?

मैं––क्या उस दरवाजे की राह जा सकूँगा जिधर से आया था?

पीला मकरन्द––क्या तुम देखते नहीं कि वह दरवाजा बन्द हो गया है और अब तुम्हारे खोलने से नहीं खुल सकता!

मैं––तब मैं क्योंकर बाहर जा सकता हूँ?

इसके जवाब में पीले मकरन्द ने कहा, "तुम मेरी सहायता के बिना यहाँ से निकलकर बाहर नहीं जा सकते क्योंकि रास्ता बहुत कठिन और चक्करदार है। खैर तुम मेरे पीछे-पीछे चले आओ, मैं तुम्हें यहाँ से बाहर कर दूँगा।"

पीले मकरन्द की बात सुनकर मैं उसके साथ-साथ जाने के लिए तैयार हो गया, मगर फिर भी अपना दिल भरने के लिए मैंने एक दफे उस दरवाजे को खोलने का उद्योग किया जिधर से उस कमरे में गया था। जब वह दरवाजा न खुला तब लाचार होकर मैंने पीले मकरन्द का सहारा लिया मगर दिल में इस बात का खयाल जमा रहा कि कहीं वह मेरे साथ दगा न करे।

पीले मकरन्द ने चिराग उठा लिया और मुझे अपने पीछे-पीछे आने के लिए कहा तथा मैं तिलिस्मी खंजर हाथ में लिये हुए उसके साथ रवाना हुआ। पीले मकरन्द ने विचित्र ढंग से कई दरवाजे खोले और मुझे कई कोठरियों में घुमाता हुआ मकान के बाहर ले गया। मैं तो समझे हुए था कि अब आपके पास पहुँचा चाहता हूँ मगर जब बाहर निकलने पर देखा तो अपने को किसी और ही मकान के दरवाजे पर पाया। चारो तरफ सुबह की सुफेदी अच्छी तरह फैल चुकी थी और मैं ताज्जुब की निगाहों से चारों तरफ देख रहा था। उस समय पीले मकरन्द ने मुझे उस मकान के अन्दर चलने के