इन्द्रजीतसिंह––हाँ, पहले तुम अपना हाल तो कहो!
भैरोंसिंह––सुनिए-अपना बटुआ पाने की उम्मीद में जब मैं उस दरवाजे के अन्दर गया तो जाते ही मैंने उन दोनों को ललकार के कहा, "मैं भैरोंसिंह स्वयं आ पहुँचा।" इतने ही में वह दरवाजा जिस राह से मैं उस कमरे में गया था बन्द हो गया। यद्यपि उस समय मुझे एक प्रकार का भय मालूम हुआ परन्तु बटुए की लालच ने मुझे उस तरफ देर तक ध्यान न देने दिया और मैं सीधा उस नकाबपोश के पास चला गया जिसकी कमर में मेरा बटुआ लटक रहा था।
मैं समझे हुए था कि 'पीला मकरन्द' अर्थात् पीली पोशाक वाला नकाबपोश स्याह नकाबपोश का दुश्मन तो है ही, अतएव स्याह नकाबपोश का मुकाबला करने में पीले मकरन्द से मुझे कुछ मदद अवश्य मिलेगी मगर मेरा खयाल गलत था मेरा नाम सुनते ही वे दोनों नकाबपोश मेरे दुश्मन हो गए और यह कहकर मुझसे लड़ने लगे कि "यह ऐयारी का बटुआ अब तुम्हें नहीं मिल सकता, यह रहेगा तो हम दोनों में से किसी एक के पास ही रहेगा।"
परन्तु मैं इस बात से भी हताश न हुआ। मुझे उस बटुए की लालच ऐसी कम न थी कि उन दोनों के धमकाने से डर जाता और अपने बटुए के पाने से नाउम्मीद होकर अपने बचाव की सूरत देखता। इसके अतिरिक्त आपका तिलिस्मी खंजर भी मुझे हताश नहीं होने देता था, अतः मैं उन दोनों के वारों का जवाब उन्हें देने और दिल खोलकर लड़ने लगा और थोड़ी ही देर में विश्वास करा दिया कि राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों का मुकाबला करना हँसी-खेल नहीं है।[१]
थोड़ी देर तक तो दोनों नकाबपोश मेरा वार बहुत अच्छी तरह बचाते चले गये मगर इसके बाद जब उन दोनों ने देखा कि अब उनमें वार बचाने की कुदरत नहीं रही और तिलिस्मी खंजर जिस जगह बैठ जायेगा दो टुकड़े किए बिना न रहेगा, तब पीले मकरन्द ने ऊँची आवाज में कहा, "भैरोंसिंह ठहरो-ठहरो, जरा मेरी बात सुन लो तब लड़ना। ओ स्याह नकाब वाले, क्यों अपनी जान का दुश्मन बन रहा है? जरा ठहर जा और मुझे भैरोंसिंह से दो-दो बातें कर लेने दे।"
पीले मकरन्द की बात सुनकर स्याह नकाबपोश ने और साथ ही मैंने भी लड़ाई से हाथ खींच लिया, मगर तिलिस्मी खंजर की रोशनी को कम न होने दिया।
मैं––(स्याह नकाबपोश की तरफ बताकर) इसके पास मेरा ऐयारी का बटुआ जिसे मैं लिया चाहता हूँ।
पीला मकरन्द––तो मुझसे क्यों लड़ रहे हो?
मैं––मैं तुमसे नहीं लड़ता बल्कि तुम खुद मुझसे लड़ रहे हो!
पीला मकरन्द––(स्याह नकाबपोश से) क्यों अब क्या इरादा है, इनका बटुआ खुशी से इन्हें दे दोगे या लड़कर अपनी जान दोगे?
स्याह नकाबपोश––जब बटुए का मालिक स्वयं आ पहुँचा है, बटुआ देने में मुझे
- ↑ बहुत ठीक, सत्य वचन!