पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/९२

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देखने वालों को उसके असली होने का धोखा होता था। दीवारों पर बनी हुई तस्वीरों के अतिरिक्त कागज और कपड़ों पर बनी हुई तथा सुन्दर चौखटों में जड़ी हुई तस्वीरों की भी इस कमरे में कमी न थी। ये तस्वीरें केवल ऐसी हसीन और नौजवान औरतों की थीं जिनकी खूबसूरती और भाव को देखकर देखने वाला प्रेम से दीवाना हो सकता था। इन्हीं तस्वीरों में इन्द्रानी और आनन्दी की तस्वीरें भी थीं, जिन्हें देखते ही कुँअर इन्द्रजीत हँस पड़े और भैरोंसिंह की तरफ देख के बोले, "देखो, यह तस्वीर इन्द्रानी की और यह उनकी बहिन आनन्दी की है। उन्हें तुमने न देखा होगा!"

भैरोंसिंह––जी, इनकी छोटी बहिन को तो मैंने नहीं देख।

इन्द्रजीतसिंह––स्वयं जैसी खूबसुरत है वैसी ही तस्वीर भी बनी है। (इन्द्रानी की तरफ देखकर) मगर अब हमें इस तस्वीर के देखने की कोई जरूरत नहीं!

इन्द्रानी––(हँसकर) बेशक, क्योंकि अब आप स्वतन्त्र और लड़के नहीं रहे।

इन्द्रानी का जवाब सुन भैरोंसिंह तो खिलखिलाकर हँस पड़ा, मगर आनन्दसिंह ने मुश्किल से हँसी रोकी।

इस कमरे में रोशनी का सामान (दीवारगीर डोल हांडी इत्यादि) भी बेशकीमत खूबसूरत और अच्छे ढंग से लगा हुआ था। सुन्दर बिछावन और फर्श के अतिरिक्त चाँदी और सोने की कई कुर्सियाँ भी उस कमरे में मौजूद थी जिन्हें देखकर कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने एक सोने की कुर्सी पर बैठने का इरादा किया मगर इन्द्रानी ने सभ्यता के साथ रोककर कहा––"पहले आप लोग भोजन कर लें, क्योंकि भोजन का सब सामान तैयार है और ठण्डा हो रहा है।"

इन्द्रजीतसिंह––भोजन करने की तो इच्छा नहीं है।

इन्द्रानी––(चेहरा उदास बनाकर) तो फिर आप हमारे मेहमान ही क्यों बने थे? क्या आप अपने को बेमुरौवत और झूठा बनाना चाहते हैं?

इन्द्रानी ने कुमार को हर तरह से कायल और मजबूर करके भोजन करने के लिए तैयार किया। इस कमरे में छोटा-सा दरवाजा दूसरे कमरे में जाने के लिए बना हुआ था, इसी राह से दोनों कुमार और भैरोंसिंह को लिए हुए इन्द्रानी कमरे में पहुँची। यह कमरा बहुत ही छोटा और राजाओं के पूजा-पाठ तथा भोजन इत्यादि ही के योग्य बना हुआ था। कुमार ने देखा कि दोनों भाइयों के लिए उत्तम-से-उत्तम भोजन का सामान चाँदी और सोने के बर्तनों में तैयार है और हाथ में सुन्दर पंखा लिए आनन्दी उसकी हिफाजत कर रही ह। इन्द्रानी ने आनन्दी के हाथ से पंखा ले लिया और कहा, "भैरोंसिंह भी आ पहुँचे हैं, इनके वास्ते भी सामान बहुत जल्द ले आओ।"

आज्ञा पाते ही आनन्दी चली गई और थोड़ी देर में कई औरतों के साथ भोजन का सामान लिए लौट आई। करीने से सब सामान लगाने के बाद उसने उन औरतों को बिदा किया जिन्हें अपने साथ लाई थी।

दोनों कुमार और भैरोंसिंह भोजन करने के लिए बैठे, उस समय इन्द्रजीतसिंह ने भेद भरी निगाह से भैरोंसिंह की तरफ देखा और भैरोंसिंह ने भी इशारे में ही लापरवाही दिखा दी। इस बात को इन्द्रानी और आनन्दी ने ताड़ लिया कि कुमार को इस भोजन में