इन्द्रजीतसिंह––निश्चय तो नहीं कह सकता कि धोखा दिया मगर जो कुछ हाल है उसे सुनकर राय दो कि हम लोग अपने को धोखे में फँसा हुआ समझें या नहीं।
इसके बाद कुँअर इन्द्रजीत सिंह ने अपना कुल हाल भैरोंसिंह से जुदा होने के बाद से इस समय तक का कह सुनाया। इसके जवाब में अभी भैरोंसिंह ने कुछ कहा भी न था कि सामने वाले कमरे का दरवाजा खुला और उसमें से इन्द्रानी को निकलकर अपनी तरफ आते देखा।
इन्द्रजीतसिंह––(भैरोंसिंह से)लो वह आ गई, एक तो यही औरत है, इसी का नाम इन्द्रानी है, मगर इस समय वह दूसरी औरत इसके साथ नहीं है जिसे यह अपनी सगी छोटी बहिन बताती है।
भैरोंसिंह––(ताज्जुब से उस औरत की तरफ देखकर) इसे तो मैं पहचानता हूँ मगर यह नहीं जानता था कि इसका नाम 'इन्द्रानी' है।
इन्द्रजीतसिंह––तुमने इसे कब देखा?
भैरोंसिंह––तिलिस्मी खंजर लेकर आपसे जुदा होने के बाद बटुआ पाने के सम्बन्ध में इसने मेरी मदद की थी। जब मैं अपना हाल सुनाऊँगा तब आपको मालूम होगा कि यह कैसी नेक औरत है, मगर इसकी छोटी बहिन को मैं नहीं जानता, शायद उसे भी देखा हो।
इतने ही में इन्द्रानी वहाँ आ पहुँची जहाँ भैरोंसिंह और दोनों कुमार बैठे बातचीत कर रहे थे। जिस तरह भैरोंसिंह ने इन्द्रानी को देखते ही पहचान लिया था उसी तरह इन्द्रानी ने भी भैरोंसिंह को पहचान लिया और कहा, "क्या आप भी यहाँ आ पहुँचे? अच्छा हुआ, क्योंकि आपके आने से दोनों कुमारों का दिल बहलेगा, इसके अतिरिक्त मुझ पर भी किसी का शक-शुव्हा न रहेगा।"
भैरोंसिंह––जी हाँ, मैं भी यहाँ आ पहुँचा और आपको दूर से देखते ही पहचान लिया बल्कि कुमार से कह भी दिया कि इन्होंने मेरी बड़ी सहायता की थी।
इन्द्रानी––यह तो बताओ कि स्नान संध्या से छुट्टी पा चुके हो या नहीं?
भैरोंसिंह––हाँ, मैं स्नान संध्या से छुट्टी पा चुका हूँ और हर तरह निश्चिन्त हूँ।
इन्द्रानी––(दोनों कुमारों से) और आप लोग?
इन्द्रजीतसिंह––हम दोनों भाई भी।
इन्द्रानी––अच्छा तो अब आप लोग कृपा करके उस कमरे में चलिए।
भैरोंसिंह––बहुत अच्छी बात है, (दोनों कुमारों से) चलिए। भैरोंसिंह को लिए हुए कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह उस कमरे में आए जिसे इन्द्रानी ने इनके लिए खोला था। कुमार ने इस कमरे को देखकर बहुत पसन्द किया क्योंकि यह कमरा बहुत बड़ा और खूबसूरती के साथ सजाया हुआ था। इसकी छत बहुत ऊँची और रंगीन थी, तथा दीवारों पर भी मुसौवर ने अनोखा काम किया था। कुछ दीवारों पर जंगल, पहाड़, खोह, कंदराकाघाटी और शिकारगाह तथा बहते हुए चश्मे का अनोखा दृश्य ऐसे अच्छे ढंग से दिया गया था कि देखने वाला नित्य पहरों देखा करे और उसका चित्त न भरे। मौके-मौके से जंगली जानवरों की तस्वीरें भी ऐसी बनी थीं कि