पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/७७

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दीवान––(क्रोध से) बेशक झूठा है और चोर भी है। (जमादार से) हाँ, अब इसकी तलाशी ली जाय।

जमादार––जो आज्ञा।

नानक की तलाशी ली गई और दो ही तीन गठरियों बाद वह बड़ी गठरी खोली गई, जिसमें सराय का सिपाही बेचारा बँधा हुआ था।

नानक ने उस बेहोश सिपाही की तरफ इशारा करके कहा, "देखिए यही तारासिंह है जो सौदागर बना हुआ सफर कर रहा था।"

तारासिंह का शागिर्द––(दीवान से) यह बात भी इसकी झूठ निकलेगी, आप पहले इस बेहोश का चेहरा धुलवाइए।

दीवान––हाँ, मेरा भी यही इरादा है। (जमादार से) इसका चेहरा तो धोकर साफ करो।

नानक––मैं खुद इसका चेहरा धोकर साफ किये देता हूँ और तब आपको मालूम हो जायगा कि मैं झूठा हूँ या सच्चा।

नानक ने उस सिपाही का चेहरा धोकर साफ किया। मगर अफसोस, नानक की मुराद पूरी न हुई और वह सिर से पैर तक झूठा साबित हो गया। अपने यहाँ के सिपाही को ऐसी अवस्था में देख कर जमादार और दीवान साहब को क्रोध चढ़ आया। जमादार ने किसी तरह का खयाल न करके एक लात नानक की कमर पर ऐसी जमाई कि वह लुढ़क गया। मगर बहुत जल्दी सम्हल कर जमादार को मारने के लिए तैयार हुआ। नानक का हर्वा पहले ही ले लिया गया था और अगर इस समय उसके पास कोई हर्वा मौजूद होता तो वेशक वह जमादार की जान ले लेता। मगर वह कुछ भी न कर सका, उल्टा उसे जोश में आया हुआ देख सभी को क्रोध चढ़ आया। सराय में उतरे हुए मुसाफिर भी उसकी तरफ से चिढ़े हुए थे। क्योंकि वे बेनारे बेकसूर रोके गये थे और उन पर शक भी किया गया था, अतएव एकदम से बहुत से आदमी नानक पर टूट पड़े और मनमानी पूजा करने के बाद उसे हर तरह से बेकार कर दिया। इसके बाद दीवान साहब की आज्ञानुसार उसकी और उसके साथियों की मुश्के कस दी गईं।

दीवान साहब ने जमादार को आज्ञा दी कि––यह शैतान (नानक) बेशक झूठा और चोर है, इसने बहुत ही बुरा किया कि सरकारी नौकर को गिरपतार कर लिया। तुम कह चुके हो कि उस समय यही सिपाही सौदागर के दरवाजे पर पहरा दे रहा था। बेशक चोरी करने के लिए ही इस सिपाही को इसने गिरफ्तार किया होगा। अब इसका मुकदमा थोड़ी देर में निपटने वाला नहीं है और इस समय बहुत देर भी हो गई है। अस्तु, तुम इसे और इसके साथियों को कैदखाने में भेज दो तथा इसका माल-असबाब इसी सराय की किसी कोठरी में बन्द करके ताली मुझे दे दो और सराय के सब मुसाफिरों को छोड़ दो। (तारासिंह के शागिर्दो की तरफ देख कर) क्यों साहब, अब मुसाफिरों को रोकने की तो कोई जरूरत नहीं है?

तारासिंह का शागिर्द––बेशक बेचारे मुसाफिरों को छोड़ देना चाहिए, क्योंकि उनका कोई कसूर नहीं। मेरा माल इसी ने चुराया है। अगर इसके असबाब में से कुछ