लिए चालबाजी के साथ उसने जमादार का कसूर माफ करके कहा, "अच्छा मैं कसूर तो तुम्हारा माफ कर देता हूँ मगर इस समय जो कुछ मैं तुमसे कहता हूँ उसे बड़ी होशियारी के साथ करना होगा, अगर कसर करोगे तो तुम्हारे हक में अच्छा न होगा।"
जमादार––नहीं-नहीं, मैं जरा भी कसर न करूँगा, जो कुछ आप हुक्म देंगे, वही करूँगा, कहिये क्या आज्ञा होती है?
तारासिंह––एक तो मैं अपनी जुबान से झूठ कदापि न बोलूँगा।
जमादार--(काँपकर) तब मेरी जान कैसे बचेगी?
तारासिंह––तुम मेरी बात पूरी हो लेने दो––दूसरे यहाँ से तुरन्त चले जाने की जरूरत भी है, इसलिए मैं अपने इन (अपने शागिर्दो की तरफ इशारा करके) दोनों साथियों को यहाँ छोड़ जाता हूँ, तुम जब चोर को गिरफ्तार करके अपने राजदीवान या राजा के पास जाना तो इन्हीं दोनों को ले जाना, ये दोनों आदमी अपने को मेरा नौकर कहकर चोरी गई हुई चीजों को बखूबी पहचान लेंगे और ये चोरी के समय मेरा यहाँ मौजूद रहना तथा तुम्हारा कसुर कुछ भी जाहिर न करेंगे और तुम भी इस बात को जाहिर मत करना कि सौदागर का गुमाश्ता भी यहाँ मौजूद था। ये दोनों आदमी अपने काम को पूरी तरह से अंजाम दे लेंगे। हाँ एक बात कहना तो भूल गया, इस सराय के अन्दर जितने आदमी हैं उन सभी की भी तलाशी ले लेना।
जमादार––(दिल में खुश होकर) जरूर उन सभी की तलाशी ले ली जायगी और जो कुछ आपने आज्ञा दी है वह सब किया जायगा। आप अपना हर्ज न कीजिए और जाइए, यहाँ मैं किसी तरह का नुकसान होने न दूँगा।
सौदागर––(तारासिंह) चला जायगा, यह जानकर जमादार अपने दिल में बहुत प्रसन्न हुआ क्योंकि इनके रहने से उसे अपना कसूर प्रकट हो जाने का डर भी था।
जमादार से और भी कुछ बातें करने के बाद तारासिंह अपने दोनों शागिर्दो को एकान्त में ले गया और हर तरह की बातें समझाने के बाद यह भी कहा, "तुम लोग मेरे चले जाने के बाद किसी तरह घबराना नहीं और मुझे हर वक्त अपने पास मौजूद समझना।"
इन सब बातों से छुट्टी पाकर तारासिंह अकेले ही वहाँ से रवाना हो गया।
3
तारासिंह के चले जाने बाद सराय में चोरी की खबर बड़ी तेजी के साथ फैल गई। जितने मुसाफिर उसमें उतरे हुए थे, सब रोके गये। राजदीवान को भी खबर हो गई, वह भी बहुत से सिपाहियों को साथ लेकर सराय में आ मौजूद हुआ। खूब होहल्ला मचा, चारों तरफ तरफ तलाशी और तहकीकात की कार्रवाई होने लगी, मगर सभी को निश्चय इसी बात का था कि चोर सिवाय उसके और कोई नहीं है जो रात रहते