पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/७१

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बहुत बड़ी सराय के अन्दर पहरा दे रहे हैं।

तारासिंह के साथ दो आदमी तो इसके शागिर्द ही हैं और दो नौकर ऐसे भी हैं जिन्हें तारासिंह ने रास्ते ही में तनख्वाह मुकर्रर करके रख लिया था, मगर ये दोनों नौकर तारासिंह के सच्चे हाल को कुछ भी नहीं जानते, इन्हें केवल इतना ही मालूम है कि तारासिंह एक अमीर सौदागर है। इस समय ये दोनों नौकर कमरे के बाहर दालान में पड़े खुर्राटे ले रहे हैं और तारासिंह तथा उसके शागिर्द कमरे के अन्दर बैठे आपस में कुछ बातचीत कर रहे हैं। कमरे का दरवाजा भिड़काया हुआ है।

तारासिंह का एक शागिर्द कमरे के बाहर निकला और उसने चारों तरफ निगाह दौड़ाने के बाद पहरे वाले सिपाही से कहा, "तुम्हें सौदागर साहब बुला रहे हैं। जाओ सुन आओ, तब तक तुम्हारे बदले मैं पहरा देता हूँ। अन्दर जाकर दरवाजा भिड़का देना, खुला मत रखना।"

हुक्म पाते ही लालची सिपाही, जिसे विश्वास था कि हमारे जमादार को कुछ मिल चुका है और मुझे भी अवश्य मिलेगा, कमरे के अन्दर घुस गया और बहुत देर तक तारासिंह का शागिर्द इधर-उधर टहलता रहा। इसी बीच में उसने देखा कि एक आदमी कई दफे इस तरफ आया, मगर किसी को टहलता देखकर लौट गया।

बहुत देर के बाद कमरे के अन्दर से दो आदमी बाहर निकले, एक तो तारासिंह का दूसरा शागिर्द और दूसरा स्वयं सौदागर-भेषधारी तारासिंह। तारासिंह के हाथ में सिपाही का ओढ़ना मौजूद था जिसे अपने शागिर्द को, जो पहरा दे रहा था, देखकर उसने कहा, "इसे ओढ़कर तुम एक किनारे सो जाओ, अगर कोई तुम्हारे पास आकर बेहोशी की दवा भी सुँघावे तो बेखटके सूँघ लेना और मुझको अपने से दूर न समझना।"

तारासिंह के शागिर्द ने ओढ़ना ले लिया और कहा––"जब से मैं टहल रहा हूँ तब से दो-तीन दफे दुश्मन आया, मगर मुझे होशियार देखकर लौट गया।"

तारासिंह––हाँ, काम में कुछ देर जरूर हो गई है। मैं उस सिपाही को बेहोश करके अपनी जगह सुला आया हूँ और चिराग गुल कर आया हूँ। (हाथ से इशारा करके) अब तुम इस खम्भे के पास लेट जाओ (दूसरे शागिर्द से) और तुम उस दरवाजे के पास जा लेटो। मैं भी किसी ठिकाने छिपकर तमाशा देखूंगा।" तारासिंह की आज्ञानुसार उसके दोनों शागिर्द बताए हुए ठिकाने पर जाकर लेट गये और तारासिंह अपने दरवाजे से कुछ दूर एक मुसाफिर की कोठरी के आगे जाकर लेट रहा, मगर इस ढंग से कि अपनी तरफ की सब कार्रवाई अच्छी तरह देख सके।

आधे घण्टे के बाद तारासिंह ने देखा कि दो आदमी उसके दरवाजे पर आकर खड़े हो गए हैं जिनकी सूरत अँधेरे के सबब दिखाई नहीं देती और यह भी नहीं जान पड़ता कि वे दोनों अपने चेहरे पर नकाब डाले हुए हैं या नहीं। कुछ अटककर उन दोनों आदमियों ने तारासिंह के आदमियों को देखा-भाला, इसके बाद एक आदमी कमरे का दरवाजा खोलकर अन्दर घुस गया और आधी घड़ी के बाद जब वह कमरे के बाहर निकला तो उसकी पीठ पर एक बड़ी-सी गठरी भी दिखाई पड़ी। गठरी पीठ पर लादे हुए अपने साथी को लेकर वह आदमी सराय के दूसरे भाग की तरफ चला गया। जब