पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/७

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पेड़ पर चढ़ा हुआ देख लेता, मगर मगर जिन सिपाहियों के पहरे में वह खेमा था उस (कैदियों वाले) खेमे के पास जो लोग रहते थे, सभी इस तूफान से घबराकर उसी खेमे के अन्दर घुस गये थे जिसमें मायारानी और दारोगा वगैरह कैद थे। खेमे के बाहर या उस पेड़ के पास कोई भी न था जिस पर लीला चढ़ी हुई थी।

लीला जब अपने निशाने को ठीक कर चुकी तब उसने एक गोली (बेहोशी वाली) चलाई। हम पहले के किसी बयान में लिख चुके हैं कि इस तिलिस्मी तमंचे के चलाने में किसी तरह की आवाज नहीं होती थी मगर जब गोली जमीन पर गिरती थी तब कुछ हलकी-सी आवाज पटाखे की तरह होती थी।

लीला की चलाई हुई गोली खेमे को छेद के अन्दर चली गई और एक सिपाही के बदन पर गिरकर फूटी। उस सिपाही का कुछ नुकसान नहीं हुआ जिस पर गोली गिरी थी। न तो उसका कोई अंग-भंग हुआ और न कपड़ा जला, केवल हलकी-सी आवाज हुई और बेहोशी का बहुत ज्यादा धुआं चारों तरफ फैलने लगा। मायारानी उस वक्त बैठी हुई अपनी किस्मत पर रो रही थी। पटाखे की आवाज से वह चौंककर उसी तरफ देखने लगी और बहुत जल्द समझ गई कि यह उसी तिलिस्मी तमंचे से चलाई गई गोली है जो मैं लीला के सुपुर्द कर आयी थी।

मायारानी यद्यपि जान से हाथ धो बैठी थी और उसे विश्वास हो गया था कि अब इस कैद से किसी तरह छुटकारा नहीं मिल सकता मगर इस समय तिलिस्मी तमंचे की गोली ने खेमे के अन्दर पहुंचकर उसे विश्वास दिला दिया कि अब भी तेरा एक दोस्त मदद करने लायक मौजूद है जो यहां आ पहुंचा और कैद से छुड़ाया ही चाहता है।

वह मायारानी, जिसकी आँखों के आगे मौत की भयानक सूरत घूम रही थी और हर तरह से नाउम्मीद हो चुकी थी, चौंककर सम्हल बैठी। बेहोशी का असर करने वाला धुआँ बच रहने की मुबारकबाद देता हुआ आँखों के सामने फैलने लगा और तरह- तरह की उम्मीदों ने उसका कलेजा ऊँचा कर दिया। यद्यपि वह जानती कि यह धुआँ मुझे भी बेहोश कर देगा, मगर फिर भी वह खुशी की निगाहों से चारों तरफ देखने लगी और इतने में ही एक दूसरी गोली भी उसी ढंग की वहाँ आकर गिरी।

मायारानी और दारोगा को छोड़कर जितने आदमी उस खेमे में थे सभी को उन दोनों गोलियों ने ताज्जुब में डाल दिया। अगर गोली चलाते समय तमंचे में से किसी तरह की आवाज निकलकर उनके कानों तक पहुँचती, तो शायद कुछ पता लगाने की नीयत से दो-चार आदमी खेमे के बाहर निकलते, मगर उस समय सिवाय एक-दूसरे का मुँह देखने के किसी को किसी तरह का गुमान न हुआ और धुएँ ने तेजी के साथ फैलकर अपना असर जमाना शुरू कर दिया। बात की बात में जितने आदमी उस खेमे के अन्दर थे, सभी का सिर घूमने लगा और एक-दूसरे के ऊपर गिरते हुए सब के सब बेहोश हो गए, मायारानी और दारोगा को दीन-दुनिया की सुध न रही।

पेड़ पर चढ़ी हुई लीला ने थोड़ी देर तक इन्तजार किया। जब खेमे के अन्दर से किसी को निकलते न देखा और उसे विश्वास हो गया कि खेमे के अन्दर वाले अब बेहोश हो गये होंगे, तब वह पेड़ से उतरी और खेमे के पास आई। आँधी-पानी का