पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/६८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
68
 

इस सराय में सबसे अच्छा, ऊँचा, दो-मंजिला और अमीरों के रहने लायक बना और सजा हुआ था तो कुछ देर के लिए अटक गया और उस कमरे तथा उसमें रहने वालों की तरफ ध्यान देकर देखने लगा, क्योंकि उसमें एक जौहरी का डेरा पड़ा हुआ था जो बहुत मालदार मालूम होता था। वह जवहरी भी जमादार को देखकर कमर के बाहर निकल आया और इशारे से जमादार को अपने पास बुलाया।

पास पहुँचने पर जमादार ने उस जौहरी को एक रोआबदार और अमीर आदमी पाकर सलाम किया और सलाम का जवाब पाने के बाद बोला, "कहिए, क्या है?"

जौहरी––मालूम होता है किस इस सराय की हिफाजत महाराज की तरफ से तुम्हारे सुपुर्द है और वे फाटक पर रहने वाले सिपाही सब तुम्हारे ही अधीन हैं।

जमादार––जी हाँ।

जौहरी––तो पहरे का इन्तजाम क्या है? किस ढंग से पहरा दिया जाता है?

जमादार––मेरे पास बारह सिपाही हैं जिनके तीन हिस्से कर देता हूँ, चार-चार आदमी एक-एक दफे घूमकर पहरा देते हैं।

जौहरी––एक साथ रहकर?

जमादार––जी नहीं, चारों अलग-अलग रहते हैं, घूमते समय थोड़ी-थोड़ी देर में मुलाकात हुआ करती है।

जौहरी––मगर ऐसा तो···(कुछ रुककर) यों खड़े-खड़े बातें करना मुनासिब न होगा, आओ, कमरे में जरा बैठ जाओ, हमें तुमसे कई जरूरी बातें करनी हैं।

इतना कहकर जौहरी कमरे के अन्दर चला गया और उसके पीछे-पीछे जमादार भी यह कहता हुआ चला गया कि "कुछ देर तक आपके पास ठहरने में हर्ज नहीं है मगर ज्यादा देर तक···"

वह कमरा कुछ तो पहले ही से दुरुस्त था और कुछ जोहरी साहब ने अपने सामान से उसे रौनक दे दी थी। फर्श के एक तरफ बड़ा-सा ऊनी गलीचा बिछा हुआ था, उसी पर जाकर जौहरी साहब बैठ गये और जमादार भी उन्हीं के पास, मगर गलीचे के नीचे बैठ गया। बैठने के साथ ही जौहरी साहब ने जेब में से पाँच अशफियाँ निकाली और जमादार की तरफ बढ़ा के कहा, "अपने फायदे के लिए मैं तुम्हारा समय नष्ट कर रहा हूँ और करूँगा तब उसका हर्जाना पहले ही दे देना उचित है।"

जमादार––नहीं-नहीं, इसकी क्या जरूरत है। इतने समय में मेरा कोई हर्ज न होगा!

जौहरी––समय का व्यर्थ नष्ट होना ही हर्ज कहलाता है, मैं जिस तरह अपने समय की प्रतिष्ठा करता हूँ, उसी तरह दूसरे के समय की भी।

जमादार––हाँ, ठीक है। मगर···मैं तो···आपका···

जौहरी––नहीं-नहीं, इसे अवश्य लेना होगा।

यों तो जमादार ऊपर के मन से चाहे जो कहे, मगर अशर्फी देखकर उसके मुँह में पानी भर आया था। उसने सोचा कि यह जौहरी एक मामूली बात के लिए जब पाँच

च॰ स॰-5-4