पहला आदमी एक खम्भे के सहारे रखकर चला गया था, और इसके बाद कमरे में अन्धकार हो जाने के कारण कुछ मालूम न हुआ कि यह दूसरा आदमी चिराग बुझाकर चला गया या उसी जगह कहीं आड़ देकर छिप रहा।
यह दूसरा आदमी भी जिसने कमरे में आकर चिराग बुझा दिया था, अपने चेहरे पर स्याह नकाब डाले हुए था, केवल नकाब ही नहीं, उसका तमाम बदन भी स्याह कपड़े से ढंका हुआ था और कद में छोटा होने के कारण इसका पता नहीं लग सकता था कि वह मर्द है या औरत।
थोड़ी ही देर बाद दोनों कुमार और भैरोंसिंह के कान में किसी के बोलने की आवाज सुनाई दी जैसे किसी ने उस अंधेरे में आकर ताज्जुब के साथ कहा हो कि "हैं! चिराग कौन बुझा गया?"
इसके जवाब में किसी ने कहा, "अपने को सम्हाले रहो और जल्दी से हट जाओ, कोई दुश्मन न आ पहुँचा हो।"
इसके बाद चौथाई घड़ी तक न तो किसी तरह की आवाज ही सुनाई दी और न कोई दिखाई ही पड़ा मगर दोनों कुमार और भैरोंसिंह अपनी जगह से न हिले।
आधी घड़ी के बाद वह पुनः हाथ में चिराग लिए हुए आया जो पहले खम्भे के सहारे चिराग रखकर चला गया था। इस आदमी का बदन गठीला और फुर्तीला मालूम पड़ता था। इसका पायजामा, अंगा; पटूका, मुंडासा और नकाब ढीले कपड़े का बना हुआ था। अबकी दफे वह बायें हाथ में चिराग और दाहिने हाथ में नंगी तलवार लिए हुए था, शायद उसे पहले दुश्मन का खयाल था जिसने चिराग बुझा दिया था, इसलिए उसने चिराग जमीन पर रख दिया और तलवार लिए चारों तरफ घूमकर किसी को ढूँढने लगा। वह आदमी जिसने चिराग बुझा दिया था एक खम्भे की आड़ में छिपा हुआ था। जब पीले कपड़े वाला उस खम्भे के पास पहुँचा तो उस आदमी पर निगाह पड़ी, उसी समय वह नकाबपोश भी सम्हल गया और तलवार खींचकर सामने खड़ा हो गया। पीले कपड़े वाले ने तलवार वाला हाथ ऊँचा करके पूछा, "सच बता, तू कौन है?"
इसके जवाब में स्याह नकाबपोश ने यह कहते हुए उस पर तलवार का वार किया कि "मेरा नाम इसी तलवार की धार पर लिखा हुआ है।"
पीले कपड़े वाले ने बड़ी चालाकी से दुश्मन का वार बचाकर अपना वार किया और इसके बाद दोनों में अच्छी तरह लड़ाई होने लगी
दोनों कुमार और भैरोंसिंह लड़ाई के बड़े ही शौकीन थे, इसलिए बड़ी चाह से ध्यान देकर उन दोनों की लड़ाई देखने लगे। निःसन्देह दोनों नकाबपोश लड़ने में होशियार और बहादुर थे, एक-दूसरे के वार को बड़ी खूबी से बचाकर अपना वार करता था जिसे देख इन्द्रजीतसिंह ने आनन्दसिंह से कहा, "दोनों अच्छे हैं, चिराग की रोशनी एक ही तरफ पड़ती है दूसरी तरफ सिवाय तलवार की चमक के और कोई सहारा वार बचाने के लिए नहीं हो सकता, ऐसे समय में इस खूबी के साथ लड़ना मामूली काम नहीं है!"
इसी बीच यकायक स्याह नकाबपोश ने अपने हाथ की तलवार जमीन पर फेंक दी और एक खम्भे की आड़ में घूमता हुआ खंजर खींच और उसका कब्जा दबाकर बोला,